✍️रिपोर्ट – कमलेश मीणा
भोपाल | राजधानी के एम्स अस्पताल में एक 37 साल के युवक ने मरने के बाद भी पाँच लोगों की ज़िंदगी बचा ली। युवक के ब्रेन डेड होने के बाद उसके परिवार ने बड़ा फैसला लिया उन्होंने उसका दिल, दोनों किडनी और दोनों आँखें (कॉर्निया) दान कर दीं।
युवक के दिल को 41 साल के मरीज के शरीर में लगाया गया। यह एम्स भोपाल का तीसरा सफल हार्ट ट्रांसप्लांट रहा। एक किडनी 30 साल के मरीज को एम्स में लगाई गई और दूसरी किडनी भोपाल के एक निजी अस्पताल भेजी गई। दोनों कॉर्निया से दो लोगों को फिर से देखने की रोशनी मिलेगी।
इस पूरी प्रक्रिया में कई विभागों की डॉक्टर टीमों ने साथ मिलकर काम किया — सीटीवीएस, यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, एनेस्थीसिया, नेत्र विभाग और फॉरेंसिक मेडिसिन के डॉक्टरों ने लगातार मेहनत की। सभी की मेहनत से यह जटिल काम सफल हो पाया।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और एम्स प्रशासन ने इस हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए आर्थिक मदद दी। अंगदान के बाद अस्पताल और पुलिस की ओर से युवक को गार्ड ऑफ ऑनर देकर सम्मानित किया गया। यह सम्मान समाज को यह संदेश देता है कि अंगदान सबसे बड़ा दान है।
यह कहानी सिर्फ एक मेडिकल सफलता नहीं, बल्कि मानवता और इंसानियत की मिसाल है। एक परिवार के साहसिक निर्णय ने पाँच घरों में खुशियाँ लौटा दीं।
मौत के बाद भी किसी की ज़िंदगी बचाई जा सकती है। अगर हर कोई अंगदान का संकल्प ले, तो कई लोगों को नया जीवन मिल सकता है।
अब्दुल्लागंज निवासी 60 वर्षीय शंकरलाल कुबरे वह व्यक्ति थे, जिन्हें सड़क दुर्घटना में गंभीर चोटें आने के बाद डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित किया था। उनके परिवार ने अंगदान का निर्णय लेकर पाँच ज़िंदगियों को नया जीवन देने का महान कार्य किया।
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Author: Raju Atulkar
"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल
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