✍️ रिपोर्ट : सूरज मेहरा
बैरसिया (भोपाल) : ग्राम पंचायत रुनाहा, जनपद पंचायत बैरसिया में एक बड़े प्रशासनिक फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। ग्राम की वर्तमान सरपंच द्रोपती बाई ने जिला पंचायत भोपाल के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को एक लिखित शिकायत देकर ग्राम सचिव जितेन्द्र श्रीवास्तव पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। सरपंच का कहना है कि वे खुद अनुसूचित जाति की महिला होते हुए भी पंचायत कार्यों में भागीदारी नहीं कर पा रहीं, क्योंकि सचिव द्वारा मनमानी की जा रही है और उन्हें धमकाया जा रहा है।
40 दुकानों और 200 प्लॉट्स की अवैध बिक्री का आरोप
शिकायत के अनुसार, ग्राम पंचायत में बनाए गए करीब 40 दुकानों और लगभग 200 प्लॉट्स को सरपंच के बिना अनुमति और हस्ताक्षर के ही बेचा गया है। सबसे गंभीर बात यह है कि ये संपत्तियाँ बाहरी लोगों को बेची गई हैं, जिससे स्थानीय ग्रामीणों के हितों की अनदेखी की गई है।
फर्जी बिल और मजदूरों के नाम पर धन निकासी
सरपंच ने यह भी आरोप लगाया कि सचिव द्वारा निर्माण कार्य न होने के बावजूद फर्जी बिलों के ज़रिए भारी भरकम राशियाँ निकाली गई हैं। एक ही OTP में कई बिलों का भुगतान किया गया है। इतना ही नहीं, फर्जी मजदूरों के नाम पर भी भुगतान किया जा रहा है, जो कि सीधे सचिव के करीबियों के खातों में ट्रांसफर हो रहा है।

सरपंच ने कहा कि यह पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार से ग्रस्त है, और सचिव कई वर्षों से एक ही पंचायत में पदस्थ होने के कारण पूरी व्यवस्था को अपने अनुसार चला रहा है।
धमकी और ब्लैकमेलिंग का आरोप
सरपंच द्रोपती बाई का दावा है कि सचिव ने उन्हें हर महीने ₹1 लाख रुपये देने का प्रलोभन दिया और कहा कि यदि वे चुप नहीं रहीं तो उनका “अविश्वास प्रस्ताव” लाकर पद से हटा दिया जाएगा। यह बयान पंचायत व्यवस्था की गंभीर खामियों और महिला जनप्रतिनिधियों के साथ हो रहे व्यवहार को उजागर करता है।
सचिव को हटाकर निष्पक्ष जांच की जाए
द्रोपती बाई ने जिला प्रशासन से मांग की है कि सचिव जितेन्द्र श्रीवास्तव को तत्काल पंचायत से हटाया जाए और किसी अन्य सचिव को पदस्थ किया जाए ताकि पंचायत में पारदर्शिता और विकास संभव हो सके। उन्होंने पंचायत में हो रहे घोटाले की उच्च स्तरीय जांच की भी मांग की है।
“मैं SC महिला हूँ, इसलिए बनाया जा रहा दबाव”
सरपंच द्रोपती बाई का सबसे बड़ा आरोप है कि वे अनुसूचित जाति (SC) समुदाय से आती हैं और इसी कारण उन्हें दबाव में रखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरपंच होते हुए भी उन्हें अपने कार्यों में हिस्सा नहीं लेने दिया जा रहा और पंचायत की अधिकांश निर्णय सचिव द्वारा मनमानी तरीके से लिए जा रहे हैं।
“सचिव ने कहा – 1 लाख दूंगा, चुपचाप बैठो” – सरपंच का आरोप
महिला सरपंच का कहना है कि पंचायत की कीमती 40 दुकानें और लगभग 200 प्लॉट सचिव द्वारा उनकी जानकारी और हस्ताक्षर के बिना बाहरी लोगों को बेच दिए गए। उन्होंने बताया कि पंचायत के कार्यों से जुड़ी सभी फाइलें और बिल बिना उनकी अनुमति के लगाए जा रहे हैं।
जब उसने इसका विरोध किया, तो सचिव जितेन्द्र श्रीवास्तव ने साफ तौर पर कहा,
“1 लाख रुपये महीना दूंगा, चुपचाप बैठी रहो, नहीं तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर हटा दूँगा।”
यह आरोप न केवल वित्तीय गड़बड़ियों को उजागर करता है, बल्कि एक महिला जनप्रतिनिधि के संवैधानिक अधिकारों के दमन का भी प्रमाण है।
यदि इन आरोपों में सच्चाई है, तो यह केवल एक पंचायत की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण ग्रामीण प्रशासन व्यवस्था की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है।
यह खबर न सिर्फ एक ग्राम पंचायत की आंतरिक गड़बड़ियों को सामने लाती है, बल्कि यह देशभर की पंचायती राज व्यवस्था की गंभीर विफलताओं और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार, जातिवाद, और महिला विरोधी मानसिकता को उजागर करती है। नीचे ऐसे कड़े और तीखे सवाल दिए गए हैं जो प्रशासन, जनप्रतिनिधियों, और समाज से पूछे जाने चाहिए:
सवाल पंचायत और प्रशासन से :
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क्या सरपंच सिर्फ एक दिखावटी पद बन गया है?
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जब बिना सरपंच की अनुमति और हस्ताक्षर के 40 दुकानें और 200 प्लॉट बेचे जा सकते हैं, तो क्या पंचायत लोकतंत्र मज़ाक नहीं बन चुका?
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जिन संपत्तियों की बिक्री हुई, उनका पैसा कहाँ गया?
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क्या कोई सरकारी रिकॉर्ड या बैंक स्टेटमेंट यह दिखा सकता है कि यह पैसा ग्राम विकास में खर्च हुआ?
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एक ही पंचायत में सचिव वर्षों तक क्यों पदस्थ रहा?
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क्या यह नियमों का उल्लंघन नहीं है? और क्या यह लंबे समय तक एक ही स्थान पर रहकर “भ्रष्टाचार का साम्राज्य” नहीं बन जाता?
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क्या पंचायत ऑडिट विभाग और जिला प्रशासन सो रहे थे?
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जब फर्जी बिल, फर्जी मजदूरों के नाम पर भुगतान हो रहा था, तब नियमित ऑडिट में यह क्यों नहीं पकड़ में आया?
सवाल महिला प्रतिनिधित्व और जातीय भेदभाव पर :
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क्या अनुसूचित जाति की महिला सरपंच होना ही उसका अपराध बन गया?
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अगर सरपंच को सिर्फ इसलिए दबाया जा रहा है कि वो SC महिला है, तो यह सामाजिक न्याय और संविधान दोनों का अपमान है।
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क्या महिला सरपंचों को सिर्फ “रबर स्टैंप” बना दिया गया है?
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जब एक महिला सरपंच को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, तो क्या हम सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की बात कर सकते हैं?
सवाल वित्तीय पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर :
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एक OTP से कई बिलों का भुगतान कैसे संभव है?
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क्या यह बैंकिंग और प्रशासनिक नियमों का खुला उल्लंघन नहीं है?
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फर्जी मजदूरों के खातों में पैसे ट्रांसफर करना – यह घोटाला या अपराध?
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क्या यह सीधा सरकारी धन की चोरी नहीं है, और इसके लिए सचिव के साथ-साथ शामिल अधिकारियों पर IPC की धाराओं में मुकदमा दर्ज क्यों नहीं हुआ?
सवाल जन प्रतिनिधियों और जनता से :
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पंचायत के अन्य सदस्य (उपसरपंच, पंच, ग्रामीण) इतने समय तक चुप क्यों थे?
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क्या सभी मौन सहमति से इस भ्रष्टाचार का हिस्सा थे?
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क्या ग्रामीण जनता को पता है कि उनके नाम पर कौन-कौन सी योजनाओं में पैसा निकाला जा रहा है?
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क्या पंचायत स्तर पर जनजागरूकता और पारदर्शिता की कमी इस भ्रष्टाचार की जड़ नहीं है?
और अंत में सबसे जरूरी सवाल –
क्या इस पंचायत के सचिव को तुरंत निलंबित कर निष्पक्ष जांच शुरू नहीं होनी चाहिए?
अगर नहीं, तो फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति सिर्फ एक नारा ही रह जाएगी।
यदि इन सवालों के जवाब सार्वजनिक नहीं किए जाते और कार्रवाई नहीं होती, तो यह न सिर्फ रुनाहा पंचायत, बल्कि पूरे पंचायती राज सिस्टम की साख और संविधान में जनता के विश्वास पर गहरा आघात होगा।
इनका कहना…
“सरपंच द्वारा लगाए सभी आरोप फर्जी है, जांच के बाद सब साफ हो जाएगा”
जितेन्द्र श्रीवास्तव, सचिव-ग्राम पंचायत रूनाहा
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Author: Tejas Reporter
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