✍️ रिपोर्ट – राजू अतुलकर
मंडीदीप | औद्योगिक पहचान रखने वाला मंडीदीप आज बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहा है। हजारों की भीड़, सैकड़ों दुकानें — लेकिन सार्वजनिक शौचालयों का नामोनिशान नहीं। महिलाएं और बुजुर्ग खुले में जाने को मजबूर हैं, और नगर की स्वच्छता पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

स्वच्छता का ढोल पीटने वाली नगर पालिका परिषद मंडीदीप की हकीकत कुछ और ही कहती है। शहर के दो प्रमुख सार्वजनिक शौचालयों को तोड़े हुए अब 3 महीने से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन न पुनिर्माण कार्य शुरू हुआ, न अस्थायी व्यवस्था की गई। नतीजा — लोग मजबूरी में खुले में पेशाब करने को विवश हैं। इससे न केवल शहर की स्वच्छता पर बुरा असर पड़ रहा है, बल्कि स्वास्थ्य जोखिम भी बढ़ते जा रहे हैं।”
हाईवे और कथित मिनी बस स्टैंड क्षेत्र में भी सुविधा का अभाव
हाईवे और कथित मिनी बस स्टैंड क्षेत्र में भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव साफ़ झलकता है। सबसे गंभीर स्थिति हाईवे पर थाने के समीप मंगल बाजार प्रवेश द्वार के सामने स्थित सार्वजनिक शौचालय परिसर की है, जो अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। यह वही क्षेत्र है, जिसे लोग मिनी बस स्टैंड के रूप में जानते हैं — जहां से रोज़ाना हजारों यात्री आवाजाही करते हैं और सैकड़ों दुकानें संचालित होती हैं।

शौचालय न होने के कारण यात्रियों, खासकर महिलाओं को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। कई महिलाएं बसों का इंतज़ार करते समय निस्तार के लिए सुरक्षित और स्वच्छ स्थान की तलाश में इधर-उधर भटकती दिखाई देती हैं। यह स्थिति न केवल असुविधाजनक है, बल्कि सार्वजनिक गरिमा और स्वच्छता दोनों के लिए चुनौती बन चुकी है।
इस स्थान से महज़ एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित खेल मैदान, कन्या और बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थी, शिक्षक और खिलाड़ी भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। खेल मैदान के समीप स्थित शौचालय को भी नगर पालिका द्वारा तोड़ दिया गया है, जबकि इसी मैदान में धार्मिक, सांस्कृतिक और खेलकूद से जुड़े बड़े आयोजन अक्सर होते रहते हैं। ऐसे आयोजनों के दौरान सैकड़ों प्रतिभागी और दर्शक स्वच्छता सुविधा के अभाव में परेशान रहते हैं।
स्टेशन रोड और सतलापुर जोड़ भी प्रभावित
स्टेशन रोड और सतलापुर जोड़ क्षेत्र की स्थिति भी अलग नहीं है। नगर के सबसे व्यस्ततम मार्गों में गिने जाने वाले इन क्षेत्रों में भी सार्वजनिक शौचालयों की समस्या विकराल रूप ले चुकी है। यहां स्थित पुराने शौचालय वर्षों से जर्जर अवस्था में थे, जिन्हें नगर पालिका ने तो तोड़ दिया, लेकिन उनकी जगह किसी भी तरह की वैकल्पिक व्यवस्था अब तक नहीं की गई। नतीजतन, इन इलाकों से गुजरने वाले यात्रियों, दुकानदारों और राहगीरों को रोज़मर्रा की असुविधा झेलनी पड़ रही है।
सतलापुर सहित औद्योगिक क्षेत्र में भी शौचालय की कमी
वर्षों पहले बने हाईवे पुल और सतलापुर जोड़ क्षेत्र के समीप स्थित सार्वजनिक शौचालय को तोड़े जाने के बाद अब तक उसका पुनर्निर्माण नहीं किया गया है। यह इलाका औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण प्रतिदिन हजारों मजदूरों और कर्मचारियों की आवाजाही का केंद्र है। ऐसे में, सार्वजनिक सुविधाओं का अभाव यहां काम करने वाले लोगों, विशेषकर महिला कर्मचारियों के लिए बड़ी परेशानी बन गया है। कई महिलाएं सुबह-शाम ड्यूटी के दौरान सार्वजनिक सुविधा की तलाश में असहज स्थिति का सामना करने को मजबूर हैं।
वहीं, सतलापुर बस्ती अब तेजी से उपनगर के रूप में विकसित हो रही है, लेकिन वहां भी आज तक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण नहीं किया गया। औद्योगिक क्षेत्र में भी गिने-चुने शौचालय ही बनाए गए हैं, जबकि यह इलाका हजारों कर्मचारियों से घिरा हुआ है। ऐसे में स्वच्छता और जनसुविधाओं का यह अभाव नगर प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
शनिवार मार्केट और स्टेशन रोड पर भी वही स्थिति
शनिवार को लगने वाले दैनिक और साप्ताहिक बाजार में हर दिन हजारों खरीदार और विक्रेता पहुंचते हैं, लेकिन पूरे बाजार क्षेत्र में एक भी सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध नहीं है। महेश शनिवार बाजार में पूर्व में पूर्णिमा राजा जैन के कार्यकाल के दौरान पंचायत भवन के समीप शौचालय का निर्माण कराया गया था, लेकिन अब वह भी उपयोग योग्य नहीं रहा।
इसी तरह, स्टेशन क्षेत्र में भी सार्वजनिक शौचालय का अभाव है, जिसके कारण दुकानदारों, ग्राहकों और यात्रियों — सभी को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल स्वच्छता की दृष्टि से चिंताजनक है, बल्कि नगर के बढ़ते व्यावसायिक महत्व पर भी सवाल खड़ा करती है।
स्थानीय नागरिकों की नाराज़गी
स्थानीय नागरिकों में नगर पालिका परिषद की कार्यप्रणाली को लेकर गहरा आक्रोश है। दुकानदारों और आसपास के निवासियों ने नगर पालिका पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाए हैं।
नागरिकों का कहना है कि नगर पालिका ने पुराने शौचालय तो तोड़ दिए, लेकिन उनकी जगह न तो नए बनाए गए और न ही कोई अस्थायी व्यवस्था की गई। महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी झेलनी पड़ रही है। स्थिति इतनी विकट है कि बच्चे और बुजुर्ग भी सड़क किनारे खुले में पेशाब करने को मजबूर हैं — जो न केवल शर्मनाक है, बल्कि स्वच्छता के पूरे दावे पर प्रश्नचिह्न लगा देता है।
लोगों का कहना है कि शहर में बने पुल और सरकारी इमारतों के आसपास का क्षेत्र अब ‘पेशाब घर’ में तब्दील होता जा रहा है, जिससे पूरे शहर की छवि धूमिल हो रही है।
अस्थायी शौचालय स्थापित करने की उठी मांग
जन समुदाय की मांग है कि नगर पालिका परिषद मंडीदीप तुरंत सभी प्रमुख स्थानों पर अस्थायी शौचालयों की व्यवस्था करे,
निर्माण कार्य में तेजी लाए और महिलाओं के लिए अलग, सुरक्षित एवं स्वच्छ सुविधा उपलब्ध कराए।
स्थानीय नागरिकों ने चेतावनी दी है कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो वे नगर पालिका के खिलाफ जन आंदोलन या हस्ताक्षर अभियान शुरू करेंगे।
मंडीदीप जैसा औद्योगिक और व्यापारिक नगर, जो हजारों श्रमिकों, व्यापारियों और महिलाओं का कार्यस्थल है, वहां सार्वजनिक शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा की समुचित व्यवस्था का न होना बेहद चिंताजनक है।
अब जरूरत है कि नगर पालिका परिषद तत्परता से कदम उठाए ताकि नागरिकों की यह दैनिक परेशानी समाप्त हो सके और मंडीदीप फिर से “स्वच्छ नगर” की श्रेणी में शामिल हो।
इनका कहना…
“नगर की स्वच्छता और नागरिक सुविधा हमारी प्राथमिकता है। मंगल बाजार क्षेत्र के दोनों शौचालयों के लिए टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ठेकेदार को निर्माण हेतु 6 माह का समय दिया गया है और दीपावली के बाद कार्य प्रारंभ होगा।
अस्थायी शौचालयों की व्यवस्था भी की जा रही है ताकि जनता को तुरंत राहत मिल सके।
सतलापुर जोड़ के लिए भी बहुत पहले टेंडर जारी किया गया है । यहां भी जल्द कार्य प्रारंभ होगा ।
प्रत्येक शौचालय 30 लख रुपए की लागत से निर्मित किया जाना है।
डॉ. प्रशांत जैन, मुख्य नगर पालिका अधिकारी, मंडीदीप
“जनता की गरिमा और स्वास्थ्य से बड़ा कोई विकास नहीं।
सतलापुर जोड़ पर सार्वजनिक शौचालय का निर्माण अब टालना नहीं, करना अनिवार्य है।
जब तक नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलेंगी, किसी भी योजना को विकास नहीं कहा जा सकता।
यदि प्रशासन ने शीघ्र कार्रवाई नहीं की, तो हम जनहित में आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे।”
जगदीश शर्मा, पूर्व उपाध्यक्ष एवं वर्तमान पार्षद वार्ड क्रमांक 13
“किसी भी नगर की स्वच्छता, सुंदरता और सभ्यता का आईना होते हैं – वहाँ के सार्वजनिक शौचालय।”
आज जब हमारा नगर प्रगति की ओर बढ़ रहा है, तो यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि हम बुनियादी सुविधाओं की ओर विशेष ध्यान दें।
विशेषतः महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों और यात्रियों के लिए स्वच्छ और सुरक्षित सार्वजनिक शौचालय एक मूलभूत आवश्यकता है – कोई विकल्प नहीं।वर्तमान में नगर के प्रमुख क्षेत्रों में शौचालयों की संख्या बहुत ही सीमित है, और दुख की बात है कि मुख्य बाजार क्षेत्र में मौजूद दो शौचालयों को हाल ही में तोड़ दिया गया है, जिससे आमजन विशेषकर महिलाओं को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
मेरी हार्दिक अपेक्षा है कि: नगर परिषद इस गंभीर आवश्यकता को समझे,शीघ्र उन टूटे हुए शौचालयों का पुनर्निर्माण करवाए,और जहाँ भी ऐसी ज़रूरत महसूस हो रही है,
वहाँ पर नई सार्वजनिक शौचालय सुविधाओं का निर्माण तत्काल किया जाए।यह केवल एक मांग नहीं,
बल्कि एक जिम्मेदार कलाकार और नागरिक की तरफ़ से एक संवेदनशील अपील है।
क्योंकि अगर हम अपने नगर को स्वस्थ, स्वच्छ और सुंदर देखना चाहते हैं,
तो हमें उसकी नींव – स्वच्छता और मूलभूत सुविधाओं – को मजबूत बनाना होगा।
– कृष्णा पंडित
संगीत निर्देशक एवं गायक
“नगर विकास के लिए स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है और इसका सीधा संबंध शौचालयों की उपलब्धता से है।
मेरे कार्यकाल में मंगल बाजार में 3, सतलापुर जोड़ पर 1 और शनिवार बाजार में पंचायत भवन के पास शौचालय निर्मित किए गए थे।
वर्तमान में शहरी क्षेत्र में शौचालयों की भारी कमी है। शौचालयों को तोड़ने से पहले नगर पालिका को ठोस योजना बनानी चाहिए थी।
शौचालय किसी नगर की स्वच्छता, प्रतिष्ठा और प्रशासनिक कुशलता का प्रतीक होते हैं।”
श्रीमती पूर्णिमा राजा जैन, पूर्व अध्यक्ष, नगर पालिका परिषद मंडीदीप
मंडीदीप नगर, जो कभी अपने शैशवकाल में एक छोटे से ग्राम के रूप में जाना जाता था, आज यौवनावस्था में प्रवेश कर चुका है। बाल्यकाल की सादगी से लेकर किशोरावस्था की प्रगति तक का सफर तय करते हुए, यह नगर आज एक विकराल रूप धारण कर चुका है — विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर, निरंतर विस्तारित।
जहाँ कभी इस नगर की जनसंख्या लगभग 2000 थी, आज वह बढ़कर दो लाख के समीप पहुँच चुकी है। यह आकड़ा न केवल इसके विकास की कहानी कहता है, बल्कि इसके समुचित प्रबंधन और सुविधाओं के पुनर्विकास की भी माँग करता है।
ऐसे में, स्वच्छता और नागरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से सार्वजनिक शौचालयों की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक हो गई है। वर्तमान में नगर की जनसंख्या की तुलना में शौचालयों की संख्या नगण्य है, जिससे नागरिकों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
मेरी नगर पालिका परिषद मंडीदीप से विनम्र अपेक्षा है कि वह शीघ्रातिशीघ्र जनसंख्या के आधार पर सभी वार्डों में, सभी प्रमुख सार्वजनिक स्थलों पर, और भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में, स्वच्छ, सुरक्षित एवं सुविधायुक्त सरकारी शौचालयों का निर्माण करवाए।
इन शौचालयों में साफ-सफाई की नियमित व्यवस्था, महिलाओं के लिए पृथक सुविधा, तथा दिव्यांगजनों हेतु विशेष व्यवस्थाएँ सुनिश्चित की जाएँ — ताकि “स्वच्छ भारत” का सपना सिर्फ कागज़ों तक सीमित न रहे, बल्कि मंडीदीप की धरती पर साकार रूप ले।
आइए, हम सब मिलकर एक स्वच्छ, सुंदर और सम्मानजनक मंडीदीप का निर्माण करें — जहाँ हर नागरिक को मिले स्वच्छता का अधिकार और हर गली-मोहल्ला बने स्वच्छता का उदाहरण।
शरद भार्गव – निदेशक,
तक्षशिला हायर सेकेंडरी स्कूल, मंडीदीप
“मंडीदीप नगर निरंतर विकास की राह पर है। स्वच्छता केवल सुविधा नहीं, बल्कि सम्मान और स्वास्थ्य का प्रतीक है। दीपावली के बाद नगर के चार प्रमुख स्थानों पर आधुनिक, साफ-सुथरे और टिकाऊ शौचालयों का निर्माण प्रारंभ किया जाएगा।
हमारा लक्ष्य है कि कोई भी नागरिक, विशेषकर महिला या बुजुर्ग, इस बुनियादी सुविधा से वंचित न रहे।”
श्रीमती प्रियंका राजेन्द्र अग्रवाल, अध्यक्ष, नगर पालिका परिषद मंडीदीप
“निकाय न केवल इस गंभीर समस्या का शीघ्र और स्थायी समाधान निकाले, बल्कि तत्काल अस्थायी व्यवस्था सुनिश्चित कर नागरिकों को त्वरित राहत प्रदान करे।”
पंकज जैन, वरिष्ठ पत्रकार एवं समाजसेवी
“मंडीदीप में सार्वजनिक शौचालयों की कमी और सफाई की अनदेखी से जनता परेशान है। महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे मजबूरी में खुले में पेशाब करने को मजबूर हैं। जैन मंदिर व अन्य धार्मिक स्थलों के पास फैली गंदगी ने धार्मिक स्थलों की गरिमा को भी प्रभावित किया है। नगर पालिका तुरंत अस्थायी शौचालय लगाए और स्थायी निर्माण में तेजी लाए।”
विनोद कुमार जैन, वरिष्ठ भाजपा नेता और समाजसेवी
किसी नगर में जनसंख्या के अनुपात में शौचालय की व्यवस्था क्या होनी चाहिए आईए जानते हैं –
1. शौचालयों की संख्या और स्थान निर्धारण –
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प्रति 20,000–25,000 जनसंख्या पर कम से कम 1 सार्वजनिक शौचालय परिसर होना चाहिए।
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यानी 6–8 सार्वजनिक शौचालय परिसर पूरे मंडीदीप नगर क्षेत्र में होने चाहिए।
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बाजार क्षेत्रों में, भीड़ को देखते हुए प्रत्येक बड़े बाजार में कम से कम
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2–3 महिला शौचालय,
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2–3 पुरुष शौचालय,
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1 दिव्यांग (विशेष आवश्यकता वाले नागरिकों) के लिए अनुकूल शौचालय बनाए जाने चाहिए।
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बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, पार्क, अस्पताल, और प्रमुख सड़कों के पास भी सार्वजनिक शौचालय अनिवार्य रूप से होने चाहिए।
2. शौचालयों की डिज़ाइन और सुविधाएँ
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महिला और पुरुषों के लिए अलग प्रवेश और संकेत बोर्ड।
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हैंडवॉश स्टेशन, पीने का पानी, और कूड़ेदान की व्यवस्था।
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दिव्यांग-अनुकूल (Accessible Toilets) — रैंप और ग्रैब-बार्स के साथ।
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सफाई के लिए स्थायी कर्मचारी या प्राइवेट एजेंसी के माध्यम से रखरखाव अनुबंध।
3. सफाई और रखरखाव व्यवस्था
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तीन बार प्रतिदिन सफाई — सुबह, दोपहर, शाम।
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सेंट्रलाइज्ड मॉनिटरिंग सिस्टम (CCTV या ऐप आधारित निगरानी)।
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स्थानीय महिला स्वयं सहायता समूह (SHG) या NGO को रखरखाव की जिम्मेदारी दी जा सकती है — इससे रोजगार भी सृजित होगा।
4. पर्यावरण अनुकूल व्यवस्था
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बायोटॉयलेट या सेप्टिक टैंक + ट्रीटमेंट सिस्टम (Soak Pit, Biodigester)।
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ग्रे वॉटर रीसायकलिंग – हैंडवॉश का पानी पौधों को देने के लिए।
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सौर ऊर्जा से संचालित लाइटिंग।
5. वित्त और प्रबंधन
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नगर पालिका अपने स्वच्छ भारत मिशन (SBM-U) के तहत केंद्र/राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त कर सकती है।
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CSR फंडिंग या पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल अपनाया जा सकता है।
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नाममात्र शुल्क (₹2–₹5) लेकर रखरखाव खर्च निकाला जा सकता है।
6. जनजागरूकता और शिकायत व्यवस्था
- हर शौचालय पर “फीडबैक QR कोड” या मोबाइल नंबर प्रदर्शित हो।
- “स्वच्छ बाजार अभियान” के तहत नागरिकों को इन सुविधाओं के उपयोग और रखरखाव में शामिल किया जाए।
मंडीदीप जैसे औद्योगिक और व्यापारिक नगर में सार्वजनिक शौचालयों की अनुपलब्धता न केवल स्वच्छता के लिए चुनौती है, बल्कि नागरिक सम्मान और स्वास्थ्य से जुड़ा गंभीर विषय भी है।
अब समय है कि नगर प्रशासन संवेदनशीलता और तत्परता के साथ इस दिशा में ठोस कदम उठाए — ताकि मंडीदीप पुनः “स्वच्छ नगर” की श्रेणी में अपनी प्रतिष्ठा कायम कर सके। तेजस रिपोर्टर ये मांग करता है, की न केवल शीघ्र इस समस्या का स्थाई समाधान निकाला जाए बल्कि तत्काल अस्थाई व्यवस्था कर लोगों को राहत दी जाए।
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Author: Raju Atulkar
"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल
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– कृष्णा पंडित
शरद भार्गव – निदेशक,







