साहब का अंदाज निराला : कलेक्ट्रेट के गलियारों से- “जब साहब चलते हैं, तो सिस्टम दौड़ता है!”

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जनसुनवाई में मेला, लेकिन अफसरों के चेहरे पीले!
साहब की बढ़ती सक्रियता का असर अब जनसुनवाई में साफ दिख रहा है। हालात ऐसे कि कमरे में पैर रखने की जगह नहीं—गैलरी, बरामदा, हर कोना खचाखच भरा! इस बार छोटे-मोटे नहीं, फर्स्ट क्लास अधिकारी भी जनसुनवाई में नजर आए। लेकिन सबके चेहरे पर वही सवाल—“अब किस पर साहब की त्यौरियां चढ़ेंगी?
कुछ अफसर कुर्सी पर बैठकर फाइलों में उलझे रहते हैं, और कुछ अफसर मैदान में उतरकर फैसले सुनाते हैं! लेकिन जब साहब हर शिकायत को अपना मामला समझकर हल करने में जुट जाएं, तो फर्क खुद-ब-खुद दिखने लगता है।
साहब की जनसुनवाई अब एक परंपरा नहीं, बल्कि बदलाव की पहचान बन गई है। लोग अपनी फरियाद लेकर आते हैं, और साहब सिर्फ सुनते ही नहीं, बल्कि समाधान भी देकर भेजते हैं। उनकी सक्रियता ऐसी कि अधिकारी भी सतर्क रहते हैं—कहीं कोई गड़बड़ न पकड़ी जाए!
जहां जनता की भीड़ हो, वहां अफसरों की घबराहट भी दिखती है। पर साहब के अंदाज में रत्तीभर भी झिझक नहीं। हर समस्या पर दो-टूक सवाल, सीधा समाधान! कभी आंखें तरेरी, कभी मुस्कुराए, और कभी एक ही शब्द में मामला सुलझा दिया।
सीधी सी बात है, “जब साहब चलते हैं, तो सिस्टम दौड़ता है!
तो चलिए, देखते हैं “तेजस रिपोर्टर” के इस विशेष कॉलम में रायसेन कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा की इस जनसुनवाई के कुछ खास लम्हे, जो बताते हैं कि आखिर क्यों कह रहे हैं हम –
साहब का अंदाज निराला!

कान की मशीन मिली, तो चेहरे पर आई रौशनी!

तीन महीने से कान की मशीन के लिए चक्कर काट रहा था प्रदीप, लेकिन मशीन नहीं मिल रही थी। पिछली जनसुनवाई में साहब से कहा, तो इस बार मशीन हाजिर! प्रदीप की खुशी देखते ही बन रही थी—“अब तो आवाजें साफ सुनाई देंगी, जनसुनवाई की भी और प्रशासन की भी!”

जब खाली पीपे बजे, तो अफसरों के कान खड़े हो गए!

ग्राम भादनेर से आई महिलाओं का गुस्सा सातवें आसमान पर था। पानी न मिलने से परेशान महिलाएं इस बार सीधे जनसुनवाई में उतर आईं—खाली पीपे बजाए, जमकर नारेबाजी की!
हंगामे की आवाज सुनते ही एसडीएम साहब दौड़े-दौड़े नीचे पहुंचे, महिलाओं को सीधा साहब के पास ले गए। साहब ने दो टूक कहा—
“समस्या हल होनी चाहिए, अभी और इसी वक्त!”

बिजली चाहिए? पहले हिसाब दो!

गांव के लोग पहुंचे और बोले—”साहब, गांव में अंधेरा है!”
साहब ने तुरंत पूछा—”बिल कितना बाकी है?”
विद्युत मंडल के अधिकारी बोले—”साहब, ₹4 लाख!”
साहब मुस्कुराए—”अच्छा, कितना भरने पर लाइट मिल सकती है?”
अधिकारी बोले—”10%!”
साहब ने तुरंत फैसला सुनाया—”बिल का इंतजाम कराओ, बिजली की चिंता मत करो! आज ही एसडीएम आपके गांव जाएंगे!”

नलकूप खोदा कहीं और, अब जवाब दो!

गांव वालों का आरोप—”जहां खुदाई होनी थी, वहां नहीं हुई। साहब, बड़े लोगों के घरों के पास कर दी!”
साहब का सीधा सवाल—”क्यों किया ऐसा?”
अधिकारी सफाई देने लगे, लेकिन साहब की नजरों से बच पाना मुश्किल था—”समस्या तुरंत हल करो, वरना अगली बार खुदाई कहीं और होगी!”

जेल की सलाखें खुलीं और अफसर उड़ गए!

साहब बोले—”फर्स्ट क्लास अधिकारी अब जा सकते हैं, लेकिन सीएम हेल्पलाइन की फाइलें साफ होनी चाहिए!”
बस, फिर क्या था—अफसर ऐसे भागे जैसे सजा पूरी होने के बाद कैदी जेल से भागते हैं!
जनसुनवाई खत्म, पर कहानी नहीं! “साहब का अंदाज निराला” है, अगली बार फिर मिलेंगे नए किस्सों के साथ—तेजस रिपोर्टर के संग!


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