किसी ने सच ही कहा है – “शिक्षा का मंदिर” अब सिर्फ इमारतें रह गई हैं, अंदर क्या हो रहा है, इसका भगवान ही मालिक! रायसेन जिले में शिक्षा व्यवस्था की हालत ऐसी हो गई है कि गधे को घोड़ा और घोड़े को गधा समझ लिया जाता है। कुछ मामले तो इतने अजब-गजब हैं कि हंसी भी आए और रोने का भी मन करे!
जिस प्राचार्य को मिला नोटिस, उसी का हुआ सम्मान!
रिजल्ट 30% से भी कम आया तो शिक्षा विभाग ने तुरत-फुरत एक सरकारी स्कूल के प्राचार्य महोदय को नोटिस थमा दिया। लगा कि अब कार्रवाई होगी, लेकिन ठहरिए! कहानी में ट्विस्ट अभी बाकी था! 15 अगस्त आते ही वही प्राचार्य महोदय मंत्री जी के हाथों सम्मानित हो गए! अब भाई, शिक्षा विभाग के इस उच्च स्तरीय “दृष्टिकोण” को समझने के लिए शायद अंतरराष्ट्रीय शोध कराना पड़े! कहां तो नौकरी पर लटकी तलवार और कहां कंधे पर सम्मान का हार! इसको कहते हैं – “सरकारी सेवा, अजब-गजब मेवा!”
प्राइवेट स्कूलों का नया सबक – सरकारी जमीन पर कब्जा
शहर का नामी संत फ्रांसिस कॉन्वेंट स्कूल पढ़ाई से ज्यादा सरकारी जमीन पर कब्जा करने की कला में पारंगत निकल गया। जैसे ही हिंदू संगठनों को भनक लगी, मामला गर्म हो गया। तहसीलदार साहब आए, बोले – “सीमांकन होगा, फिर फैसला होगा!” लेकिन साहब! अब एक हफ्ता से ज्यादा हो गया, जमीन सीमांकित होगी या नहीं, यह तो सरकारी कछुआ चाल पर निर्भर है। हिंदू संगठनों के तेवर अभी गर्म हैं, देखते हैं मामला कब तक पकता है!
बिना खेल मैदान के खेला हो रहा है!
निजी स्कूलों की नई परिभाषा – “जगह कम, मुनाफा ज्यादा!” रायसेन का एक स्कूल बिना खेल मैदान के पिछले एक दशक से दो मंजिला इमारत में धड़ल्ले से चल रहा है। अरे भैया! जब सरकारी जमीन को ही खेल मैदान बना लिया तो अपने मैदान की क्या जरूरत? जिला शिक्षा अधिकारी साहब ने हामी भरी – “हां, यह सही है!” लेकिन चूंकि वो अभी 10 महीने पहले आए हैं, इसलिए अभी सिर्फ “देखेंगे, जांच करेंगे, कार्रवाई होगी” वाला सरकारी पाठ रट रहे हैं। अब दो महीने बाद देखना है, अधिकारी महोदय तीर चलाते हैं या फिर चाय सुड़कते हैं!
मदरसे के संचालक ने डीपीसी साहब को दिखाए तीखे तेवर!
केंद्र सरकार का फरमान आया – “सभी स्कूलों के छात्रों की अपार आईडी बने!” अब शिक्षा विभाग ने सरकारी, प्राइवेट और मदरसों को सूचना दी। रायसेन के एक मदरसे के संचालक जी भड़क गए – “अरे भैया, हमारी मान्यता ही निरस्त कर दो!” डीपीसी साहब अवाक! अब उनकी हालत ऐसी हो गई कि काटो तो खून नहीं! लेकिन अब हफ्तेभर से सब शांत है, लगता है कोई आपसी “समझदारी” बन गई होगी! क्या समझदारी बनी? जनता जानना चाहती है!
63 साल पुराना स्कूल, लेकिन अधिकारी वही
रायसेन के एक 63 साल पुराने स्कूल में अधिकारियों के नाम दीवारों पर आज भी पूर्ववत लिखे हुए हैं! कुछ ऐसे नाम लिखे मिले, जिनका 3 साल पहले तबादला हो गया है! जैसे ही हमने फोटो खींचे, प्रभारी प्राचार्य महोदय घबरा गए – “साहब, छापना मत!” अब बताइए, सरकार बदल जाती है, मंत्री बदल जाते हैं, लेकिन यहां तो अधिकारी आज भी सूचना पटल पर उपस्थित हैं! ऐसा “कारनामा” कर दिखाने के लिए सरकार को न इस स्कूल को सम्मानित कर देना चाहिए!
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सबसे तेज…
तो पढ़ते रहिए – “व्यंग्यबाण“
“तेजस रिपोर्टर” के इस विशेष कॉलम में, जहां विभिन्न क्षेत्रों के अजब-गजब मामलों पर तीखे “व्यंग्यबाण“ छोड़े जाते हैं!
हमारी पैनी नजर से बच नहीं पाएंगे वे लचर व्यवस्थाएं और गैरजिम्मेदाराना कारनामे, जिन पर होगा करारा प्रहार व्यंग्य के धारदार शब्द बाणों के साथ।
तो बने रहिए “व्यंग्यबाण” के साथ – जहां व्यंग्य के तीर चलते हैं और सच्चाई बेनकाब होती है!
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Author: Tejas Reporter
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