राजस्थान के करौली जिले में स्थित श्री महावीर जी संग्रहालय न केवल जैन धर्म की सांस्कृतिक धरोहर को समर्पित है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और कला का अभूतपूर्व केंद्र भी है। यहां संरक्षित दुर्लभ जिन प्रतिमाएं, प्राचीन कलाकृतियां, और ऐतिहासिक धरोहरें देश-विदेश से आए पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करती हैं।
दुर्लभ जिन प्रतिमा: 9वीं सदी की कलात्मक कृति
संग्रहालय की सबसे प्रमुख धरोहरों में से एक है 9वीं सदी की एक अद्वितीय जिन प्रतिमा, जो सात सर्पफणों, केश सहित वृषभ लांछन और नवग्रहों से सुशोभित भगवान ऋषभदेव की अति दुर्लभ जिन प्रतिमा दर्शनीय है।
यह अद्वितीय धातु की प्रतिमा 9वीं सदी की है, जो बनारस से प्राप्त हुई है। इसे पूज्य मुनि श्री चैत्य सागर जी महाराज के आचार्य पद आरोहण दिवस पर श्री सत्येंद्र चौहान जैन द्वारा भेंट किया गया था। धातु से बनी यह प्रतिमा भारतीय मूर्तिकला की बेमिसाल उत्कृष्टता को दर्शाती है।
कुषाण कालीन देवी अंबिका की दुर्लभ मूर्ति
संग्रहालय का एक और मुख्य आकर्षण कुषाण काल की देवी अंबिका की मृण प्रतिमा है। इस मूर्ति में देवी को गोद में एक बालक के साथ दर्शाया गया है, जो इसे विशिष्ट बनाता है। वाराणसी में सतेंद्र चौहान जैन द्वारा दान की गई यह मूर्ति जैन धर्म और भारतीय इतिहास के गहरे पहलुओं को उजागर करती है।
संग्रहालय का निर्माण: पद्मश्री ओ. पी. अग्रवाल की प्रेरणा
इस संग्रहालय के निर्माण में प्रसिद्ध कला संरक्षण विशेषज्ञ पद्मश्री ओ. पी. अग्रवाल की प्रेरणा और मार्गदर्शन का विशेष योगदान रहा है। उन्होंने संग्रहालय को जैन धर्म और भारतीय संस्कृति की दुर्लभ कलाकृतियों के संरक्षण और संवर्धन का केंद्र बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भविष्य की योजनाएं और महत्व
श्री महावीर जी संग्रहालय केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय कला और इतिहास का अध्ययन करने वालों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत भी है। संग्रहालय प्रबंधन आने वाले वर्षों में और भी दुर्लभ और प्राचीन कलाकृतियों को संग्रह में शामिल करने की योजना बना रहा है।
पर्यटकों के लिए खास आकर्षण
संग्रहालय में जिन प्रतिमाओं और प्राचीन वस्त्रों के अलावा जैन तीर्थंकरों की भव्य मूर्तियां भी प्रदर्शित हैं। यह संग्रहालय कला प्रेमियों, इतिहासकारों, और धर्मावलंबियों के लिए समान रूप से रुचिकर है।
शोधकर्ताओं और कला प्रेमियों के लिए आदर्श स्थल
लखनऊ निवासी शैलेंद्र कुमार जैन ने कहा कि संग्रहालय में संरक्षित वस्तुओं को और अधिक शोध और अध्ययन के लिए सार्वजनिक किया जाना चाहिए। यह संग्रहालय न केवल जैन धर्म का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, कला, और संस्कृति का भी अमूल्य भंडार है।

श्री महावीर जी संग्रहालय, जैन धर्म और भारतीय कला के अद्वितीय संगम का प्रतीक है। यह स्थान न केवल धार्मिक अनुयायियों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति की गहराई को समझना चाहता है।
संकलन : शैलेन्द्र कुमार जैन, लखनऊ
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Author: Tejas Reporter
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