झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही से गई मासूम की जान: क्लीनिक सील हुआ, फिर भी खोला दूसरा अवैध सेंटर, सीएमएचओ ने FIR के दिए आदेश

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रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | जिले के करैरा थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम अमोलपठा में फर्जी डॉक्टर पप्पू बघेल की लापरवाही से एक 8 वर्षीय मासूम सुखवीर आदिवासी की जान चली गई। बच्चा बुखार से पीड़ित था, लेकिन बिना किसी जांच के झोलाछाप पप्पू बघेल ने उसे मलेरिया बताकर लगातार दो तरह की दवाएं पिलाईं। जब बच्चे की तबियत बिगड़ी और उसने दम तोड़ा, तब आरोपी ने परिजनों से कहा कि बच्चे को दूसरे अस्पताल ले जाओ।
इस अमानवीय व्यवहार और चिकित्सा उपेक्षा के मामले में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. संजय ऋषिश्वर ने दिनांक 4 जून 2025 को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अमोलपठा के प्रभारी डॉ. सुनील जैन को निर्देशित किया कि वह अमोलपठा पुलिस चौकी में आरोपी पप्पू बघेल के विरुद्ध FIR दर्ज कराएं।

सील होने के बाद फिर खोला अवैध क्लीनिक
इस घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग ने 22 मई को पप्पू बघेल की फर्जी क्लीनिक पर कार्रवाई करते हुए उसे सील कर दिया था। यह कार्रवाई तीन सदस्यीय निरीक्षण दल – फार्मासिस्ट सोमनाथ गौतम, जिला मलेरिया अधिकारी लालजू शाक्य एवं डॉ. सुनील कुमार (जिला स्वास्थ्य अधिकारी) द्वारा की गई थी।
लेकिन कठोर कार्रवाई के अभाव में आरोपी ने पास ही दूसरी दुकान में फिर से अवैध क्लीनिक खोल ली और मरीजों की जान से खिलवाड़ जारी रखा।
क्लीनिक सीलिंग प्रक्रिया का विवरण
निरीक्षण दल जब पप्पू बघेल के मकान में संचालित फर्जी क्लीनिक पर पहुंचा, तो वह बंद मिला। पड़ोसियों से जानकारी लेने के बाद ग्राम सरपंच पति भरत परिहार की उपस्थिति में मकान को सील किया गया। मकान के दो मुख्य हिस्सों – गैलरी और कमरे – को ग्रामीणों की गवाही लेकर सील किया गया, और इसकी सूचना अमोलपठा चौकी पुलिस को दी गई ताकि निगरानी रखी जा सके।
किन धाराओं में दर्ज हो सकता है केस?
सीएमएचओ कार्यालय द्वारा सुझाए गए अनुसार, पप्पू बघेल के खिलाफ निम्नलिखित धाराओं में केस दर्ज किया जा सकता है:
1. भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 271 व 272 – सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति खतरा व जालसाजी।
2. मप्र उपाचार्य गृह अधिनियम 1973 (धारा 5 एवं 8) – बिना पंजीकरण क्लीनिक संचालन।
3. औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम 1940 की धारा 18A – बिना लाइसेंस दवा वितरण।
4. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 15 – अस्वच्छ एवं अनुचित चिकित्सा सुविधाएं।
5. बीएनएस धारा 106 – चिकित्सा उपेक्षा, जिसके अंतर्गत अब 5 वर्ष की सजा का प्रावधान है।
6. मप्र राज्य आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम धारा 24 – बिना पंजीकरण स्वयं को डॉक्टर बताना।
7. चिकित्सा शिक्षा संस्था (नियंत्रण) अधिनियम, 1973 संशोधित 2006, धारा 7-ग – “डॉक्टर” उपाधि का गलत उपयोग।
सवाल उठते हैं – क्या होगी व्यापक कार्रवाई?
स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई केवल पप्पू बघेल तक सीमित रही है जबकि जिले में दर्जनों झोलाछाप डॉक्टर खुलेआम मानव जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। कई बार देखा गया है कि प्रशासन कुछ झोलाछापों पर कार्रवाई कर मीडिया में सुर्खियां बटोरता है और बाद में उन्हीं लोगों से “मामला रफा-दफा” करने के नाम पर वसूली होती है।
इस बार जब FIR का आदेश सीएमएचओ स्तर से जारी हुआ है, तो सवाल है कि क्या प्रशासन अब अन्य अवैध डॉक्टरों पर भी कार्रवाई करेगा?
या फिर यह मामला भी पहले की तरह “एक कार्रवाई और फिर खामोशी” में बदल जाएगा?
जनहित में यह आवश्यक है कि:
स्वास्थ्य विभाग जिलास्तरीय जांच समिति बनाकर सभी अवैध क्लीनिकों की सूची तैयार करे।
समयबद्ध रूप से अभियान चलाकर झोलाछाप डॉक्टरों के विरुद्ध मुकदमा दायर किया जाए।
संबंधित थाना प्रभारियों को जिम्मेदारी दी जाए कि सील क्लीनिकों पर दोबारा ताले न टूटें और मरीजों की जान से न खेला जाए।

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