अहिच्छत्रा से प्राप्त प्राचीनतम जैन पुरावशेष : जैन धर्म और भारतीय इतिहास की अद्भुत धरोहर

SHARE:

सोशल डेस्क
अहिच्छत्रा की गणना भगवान ऋषभदेव द्वारा निर्मित भारत के प्राचीन 52 जनपदो मे एक पांचाल जनपद की राजधानी के रूप मे मिलती है। महाभारत काल  मे पांचाल दो भागो मे विभक्त हो गया जिसमे उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्रा द्रोणाचार्य और दक्षिण पांचाल की राजधानी काम्पिल द्रुपद के अधिकार मे थी। शतपत ब्राह्मण मे इसे परिचक्रा कहा गया है तो महाभारत मे छत्रवती,अहिछत्रा,अहिछेत्र तथा पाणिनि के अष्टाध्यायी और हरिवंश पुराण मे भी यही रूप पाए जाते हैं।

जैन ग्रंथो मे इसे संख्यावती और अहिछेत्र कहा गया है। अहिछेत्र ही इसका सबसे महत्वपूर्ण नाम है जिसका उल्लेख (पभोषा) प्रयागराज के अशाढसेन के दो हजार वर्ष प्राचीन गुफालेख मे पाया गया है।

अहिछेत्र के ध्वंसावशेषो से प्राप्त एक गुप्त कालीन मिट्टी की मोहर पर ( श्री अहिच्छत्रा भुक्तौ कुमारमात्याधिकरणस्य) लेख एवं एक यक्ष प्रतिमा पर भी अहिछत्रा उल्लेखित है।
अहिछत्रा से जैन धर्म का संबद 23 वे तीर्थंकर पार्श्वनाथ के द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त करने से जुडा है जो तप करते समय उनके पूर्व जन्मो के बैरी कमठ द्वारा घनघोर वर्षा कर उपसर्ग करने पर नागराज धरणेंद्र और देवी पद्मावती (दो सर्पो) के द्वारा तपलीन पार्श्वनाथ की सर्पफण से रक्षा कर केवलज्ञ प्राप्त करने की स्मृति से जुडा है जैसा इसके नाम मे अहि (सर्प) छत्र से भी प्रतिबिंबित होता है।

इस घटना की स्मृति मे उनकी मूर्तियां सर्पफण सहित बनाई गईं । साथ-साथ  धरणेंद्र और पद्मावती के साथ एवं स्वतंत्र रूप से पूरे देश मे भी बनाई गई।
यह घटना इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसकी गूंज दक्षिण भारत तक उस काल मे पहुंच गई थी। इसका ऐतिहासिक समर्थन कल्लूरगुड्डू जिला शिमोगा मैसूर मे उपलब्ध सन् 1121 के शिलालेख (जै शि सं भा 2पृ410/11) से होती है जो  सिद्धेश्वर मंदिर के पाषाण स्तंभ मे उल्लेखित है कि जब भगवान पार्श्वनाथ को अहिछत्र मे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी तब यहां प्रियबंधु राजा राज्य करता था। वह भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन करने अहिच्छत्र गया था । इसमें गंग वंशावली दी गई है और यह बहुत महत्वपूर्ण शिलालेख है।
तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की अति प्राचीन प्रतिमा
पार्श्वनाथ से अहिछत्रा संबद स्थापित करने वाला एक महत्वपूर्ण अभिलेख महाभारत कालीन किले के निकट कटारी खेला नामक एक टीले से प्राप्त स्तंभ लेख से भी होता जिसमे महाचार्य इंद्रनंदि के शिष्य महादरि के द्वारा पार्श्वपति ( पार्श्वनाथ) के मंदिर मे दान देने का उल्लेख है।यह मंदिर गुप्त काल तक अवश्य रहा होगा। इस किले और टीलो  से कई जैन मूर्तियां मिली जिनमे कुछ को ग्रामवासी ग्राम देवता मानकर पूजते हैं। इसका अस्तित्व गुप्त काल तक समाप्त हो गया होगा। यहां कई मित्र वंशी शाषको के सिक्के मिले है जिनमे कई राजा जैन धर्मानुयायी थे। जिसका समर्थन यहां से प्राप्त विशाल पुरावशेषो से हो जाता है जिनका संग्रह स्थानीय मंदिर मे लखनऊ और दिल्ली के संग्रहालयो तथा पं. सुरेंद्र मोहन मिश्रा जी के चंदौसी , पांचाल शोध संस्थान एवं अन्य संग्रहालयो मे संग्रहित है।

अहिच्छत्रा के ध्वंसावशेषों से प्राप्त पुरावशेषो से ताम्रयुगीन मानवाकृतियां (हार्पून) भाले तलवार कडे आदि (2000 से 700 ई पूर्व) तथा पेंटेड ग्रे वेयर कहे जाने वाले बर्तनो के अवशेष (1500 से 700 ई पूर्व)  प्राप्त हुए हैं जो इस नगर के चार हजार साल के इतिहास और पुरातात्व समझने मे सहायक है। पांचाल से प्राप्त इन विशेष मृण मूर्ति कला को अहिछत्रा स्कूल ऑफ टेराकोटा आर्ट कहा जाता है।

भारत की प्राचीनतम जैन प्रतिमा

प्राक् मौर्य कालीन (लगभग 700 ई पूर्व) की  सप्त सर्पफण से सुशोभित पार्श्वनाथ की एक दुर्लभ मृण मूर्ति का शीर्ष प्राप्त हुआ है जो भारत मे प्राप्त अब तक के जैन अवशेषो मे सबसे प्राचीन है और अति दुर्लभ है।

इसका चित्र डायरेक्टर आर्कलाजिकल सर्वे आफ इंडिया  (नई दिल्ली) कार्यालय के सौजन्य से विकीपीडिया से प्राप्त हुआ है। (चित्र 1) संभवतः इसी काल की एक पकी मिट्टी की मृण मूर्ति का कायोत्सर्ग खड्गासन अवस्था की पैर के नीचे एवं वक्ष के ऊपर से खण्डित है (चित्र 2) यह और कुछ अन्य मृण एवं पाषाण मूर्तिया और अवशेष पं सुरेंद्र मोहन मिश्रा के व्यक्गित संग्रहालय मे संग्रहित है।

इसी प्रकार की मृण  मूर्तियां अयोध्या,बनारस ,कौशांबी,पिपहरवा,वैशाली आदि स्थानो से भी प्राप्त हुई है।

जिनमे अयोध्या से प्राप्त चौथी सदी ईसा पूर्व की जिन केवलिन की खंडित मृण मूर्ती (चित्र 3)

और बनारस की शुंग कालीन देवी अंबिका मृण मूर्ति (चित्र 4 ) को मैने ही प्रथम बार प्रकाशित कराया था।

इसी तरह की शुंग कालीन नागदेवी की मूर्ति मृण मूर्ति (जिसै संभवतः देवी पद्मावती की भी मानी जा सकता है (चित्र 5 ) उल्लेखनीय है ।

शुंग कालीन पकी मिट्टी का एक मृण्फलक जिसपर दो सर्पो की आकृतियां  बनी हैं (चित्र 6) जिसे संभवत नागराज धरणेंद्र और देवी पद्मावती की स्मृति रूप मे निर्मित किया गया होगा यह भी दर्शनीय है।कुछ यक्ष प्रतिमाऍ अज मुखी (बकरे के मुख) वाली मिलती है जिनको विद्वान नैगमेश के रूप मे देखते हैं।

जिनका उल्लेख श्वेतांबर जैन परंपरा मे महावीर के भ्रूण प्रत्यारोपण करने वाले देव के रूप मे हुआ है। इसी क्रम मे पं. सुरेंद्र मोहन मिश्र के व्यक्गित संग्रहालय मे इनके साथ ही शुंग कालीन पाषाण का खड्गासन धड जो गर्दन और पैरों से खंडित है (चित्र 7)।

एक गुप्त कालीन पद्मासन तीर्थंकर किसी मंदिर के स्तंभ का भाग है( चित्र 8)।एक अन्य शीर्ष विहीन पाषाण पद्मासन मध्यकालीन मूर्ति (चित्र 9)

एक प्रस्तर प्रतिमा पर प्रभामंडल के साथ किन्नर देव एवं हस्तिसवार अंकित है। अहिछेत्र नाम सर्पफण और पार्श्वनाथ से संबंधित मूर्तियां देशभर मे ई पूर्व काल से ही मिलते है जिनमे इन सबके साथ ही दो हजार साल से भी प्राचीन (चित्र10)

मुंबई, अलुवारा, लखनऊ, मथुरा आदि की इन मूर्तियो से तथा पभोषा अहिछत्रा 11आदि के अभिलेखो एवं पुरावशेसो से इस विषय का ऐतिहासिक समर्थन होता है।

उपरोक्त जानकारी देते हुए श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष शैलेंद्र कुमार जैन, लखनऊ ने बताया कि डॉ.के.एस. शुक्ल (पुरातात्व के नूतन सोपान), डॉ. अतुल मिश्र (अहिछत्रा का सांस्कृतिक इतिहास), बलभद्र जैन
(भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (प्रथम भाग), डॉ शैलेंद्र रस्तोगी (लखनऊ संग्रहालय की जैन प्रतिमाऍ), डॉ. अतुल मिश्र द्वारा प्रेषित फोटो और जानकारी तथा स्वयं के द्वारा किए गए शोध के आधार पर यह तमाम जानकारी दी गई है।

देश का सबसे तेजी से उभरता और लोकप्रिय हिंदी न्यूज़ प्लेटफॉर्म 🖱️ www.tejasreporter.com अब आपके लिए है हर पल की सटीक और विश्वसनीय खबरों के साथ।
📱 बदलते समय के साथ जहां हर क्षेत्र में डिजिटलीकरण हो रहा है,
वहीं “दैनिक तेजस रिपोर्टर” अत्याधुनिक तकनीक से लैस डिजिटल प्लेटफॉर्म पर निष्पक्ष, सत्य और तथ्यात्मक रिपोर्ट्स के साथ पूरी ईमानदारी से अपनी सेवाएं दे रहा है।
मैं, पंकज जैन ✍🏻, और मेरी पूरी टीम, अब 24X7 आपके लिए देश और दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण और ताजा खबरों को पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
👉 हमारी बेबाक और निर्भीक लेखनी, निष्पक्ष दृष्टिकोण, और सटीक जानकारी ने हमें लाखों पाठकों का विश्वास दिलाया है।
📢 सभी अपडेट्स और नोटिफिकेशन सीधे पाने के लिए, अभी नीचे दिए गए बेल आइकन पर क्लिक करें और हमारे साथ जुड़ें।
www.tejasreporter.com – सटीकता, निष्पक्षता, और विश्वसनीयता का प्रतीक।
Tejas Reporter
Author: Tejas Reporter

Join us on:

सबसे ज्यादा पड़ गई
Marketing Hack4u
error: Content is protected !!