त्याग, तपस्या और संघर्ष से खड़ा ‘सहरिया क्रांति आंदोलन’ – जंगल में शोषण के खिलाफ उठी चेतना की ज्वाला

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रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | देश की आज़ादी को सात दशक से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन मध्यप्रदेश की धरती पर बसे कई आदिवासी समुदाय अब भी अपने अधिकार, वजूद और अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख है सहरिया जनजाति, जो दशकों से शोषण, बंधुआ मजदूरी, भू-माफियाओं के कब्जे और प्रशासनिक उपेक्षा का सामना करती आई है। लेकिन जब चारों ओर निराशा और अंधेरा था, तब इसी धरती के जंगलों से उठी एक मशाल ने हालात बदलने की शुरुआत की — यह थी ‘सहरिया क्रांति आंदोलन’।
पत्रकारिता से जनांदोलन तक की यात्रा
इस आंदोलन की बुनियाद रखी जाने-माने पत्रकार संजय बेचैन ने। उन्होंने कलम की ताकत को ज़मीन पर संघर्ष में बदला और जंगल-जंगल घूमकर आदिवासियों को संगठित किया। उनके साथ जुड़े आदिवासी समाज के असली नायक — विजय भाई, अनिल आदिवासी, ऊधम भाई, औतार भाई — जिन्होंने अपने खून-पसीने से इस आंदोलन को सींचा।
इन योद्धाओं ने वर्षों से दबंगों के कब्जे में पड़ी आदिवासी जमीनों को मुक्त कराने के लिए मोर्चा खोला। रसद माफिया और स्थानीय दबंगों की जड़ें हिलने लगीं। प्रशासन, जो पहले शोषकों की ढाल था, अब कार्रवाई के लिए मजबूर हुआ। पुलिस थानों के दरवाजे, जो कभी आदिवासियों के लिए बंद थे, अब उनकी फरियाद सुनने लगे।
दमन से नहीं टूटा हौसला
संजय बेचैन की आवाज़ को दबाने के लिए उन पर लाठियां चलाई गईं, तलवारें लहराईं, यहां तक कि गोलियां भी दागी गईं। लेकिन हर हमले के बाद आंदोलन और मजबूत होकर उठा।
संघर्ष की इस राह में अजय आदिवासी, कल्याण आदिवासी, परमाल आदिवासी, भदोरिया आदिवासी, सोनू, राजेन्द्र आदिवासी, कमल सिंह, हजारी, मोहर सिंह, पातीराम, रत्ती बाबा, फ़ौजा बाबा, गणेश आदिवासी जैसे अनेक सच्चे सिपाही जंगल-जंगल घूमकर लोगों को जोड़ते रहे।
माफिया से सीधी टक्कर
कभी ‘बाबा’ के दमन तो कभी ‘शेरा सरदार’ के आतंक से लोग डरते थे, लेकिन सहरिया क्रांतिकारियों ने न केवल इन ताकतों को चुनौती दी बल्कि उन्हें झुका भी दिया। यह संघर्ष जंगल की आग की तरह फैला और सत्ता-माफिया गठजोड़ की नींव हिल गई।
सामाजिक क्रांति की मिसाल
सहरिया क्रांति केवल जमीन और अधिकार की लड़ाई तक सीमित नहीं रही। इसने शराबमुक्ति अभियान को जन-आंदोलन बनाया। मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश के सहरिया बहुल गांवों में लाखों युवाओं ने शपथ लेकर नशा छोड़ दिया और आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी।
स्थापना दिवस की ऐतिहासिक रैली
हर वर्ष 5 अगस्त को ‘सहरिया क्रांति स्थापना दिवस’ मनाया जाता है। इस वर्ष की रैली ऐतिहासिक रही। हजारों आदिवासियों ने एकजुट होकर अपनी आवाज़ बुलंद की, भू-माफियाओं और दबंगों को खुली चेतावनी दी कि अब आदिवासी न तो डरेंगे और न चुप रहेंगे।
बिरसा मुंडा के आदर्शों की पुनर्जीवित चेतना
आंदोलन का नारा —
जंगल हमारा है, जमीन हमारी है, हम इससे पीछे नहीं हटेंगे”
भगवान बिरसा मुंडा के आदर्शों की तरह, यह क्रांति अब भारतीय आदिवासी चेतना का ऐतिहासिक मोड़ बन चुकी है।

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Raju Atulkar
Author: Raju Atulkar

"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल

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