बामौरकलां को मिला पुण्य अवसर: मुनि श्री 108 उत्कृष्ट सागर जी महाराज का चातुर्मास 2025 यहीं होगा

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रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | बामौरकलां नगर इन दिनों अध्यात्म, श्रद्धा और सौभाग्य से सराबोर है। कारण है – दिगंबर जैन संत मुनि श्री 108 उत्कृष्ट सागर जी महाराज का इस वर्ष 2025 का चातुर्मास यहीं होना। चार माह तक उनकी दिव्य उपस्थिति, तप, स्वाध्याय और प्रेरक वचनों का लाभ स्थानीय समाज और श्रद्धालुओं को मिलेगा।
यह और भी विशेष संयोग है क्योंकि मुनि श्री उत्कृष्ट सागर जी महाराज आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के अंतिम दीक्षित शिष्य हैं। उनकी दीक्षा हाल ही में 25 अप्रैल 2024 को डिग्गी, टोंक (राजस्थान) स्थित अग्रवाल सेवा सदन में आचार्य श्री 108 इंद्रनंदी जी महाराज के करकमलों से संपन्न हुई थी।
दीक्षा से चातुर्मास तक – एक दिव्य यात्रा का आरंभ
दीक्षा का क्षण कोई साधारण घटना नहीं होती। यह आत्मा के संसार से वैराग्य और मोक्षमार्ग की ओर प्रथम कदम होता है। ब्रह्मचारी प्रकाशचंदजी सांगानेर, जिन्होंने कठोर तप, संयम और साधना से स्वयं को साधु जीवन के योग्य बनाया, उन्हें दीक्षा के पश्चात ‘मुनि श्री 108 उत्कृष्ट सागर जी’ नाम मिला।
और अब, दीक्षा के मात्र एक वर्ष बाद ही उनका पहला चातुर्मास बामौरकलां जैसे शांत, श्रद्धाभाव से ओतप्रोत नगर में हो रहा है – यह निश्चित ही एक पुण्य फल है, जो इस नगर के भाग्य में लिखा गया।
क्या है चातुर्मास और क्यों है यह विशेष?
चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है – चार माह की ठहराव की अवधि। यह वह समय होता है जब जैन साधु-संत वर्षा ऋतु में जीवों की रक्षा हेतु एक स्थान पर रुकते हैं।
इस काल में:
  • साधु स्वाध्याय, तप, ध्यान और प्रवचन में लीन रहते हैं
  • श्रद्धालु संयम, उपवास और सत्संग का लाभ लेते हैं
  • समाज धर्म, सेवा और क्षमा जैसे मूल्यों को जीवन में उतारता है
मुनि श्री उत्कृष्ट सागर जी महाराज का चातुर्मास बामौरकलां में होना इस नगर को चार माह की अध्यात्मिक ऊर्जा से भर देगा।
मुनि श्री की प्रेरणा:
संयम और सरलता की जीती-जागती मूर्ति
मुनिश्री का जीवन अपने आप में एक संयम, साधना और साधुता की मिसाल है। उनकी वाणी में गंभीरता है, भावों में करुणा है और शिक्षाओं में सरलता। उन्होंने प्रारंभिक जीवन में ब्रह्मचर्य, तप और आत्मिक अनुशासन को अपनाकर जो साधना की, वही उन्हें दीक्षा तक ले गई।
बामौरकलां के श्रद्धालु अब प्रतिदिन उनके उपदेश, स्वाध्याय सत्र और सन्निधि में रहकर उस साधना का लाभ प्रत्यक्ष रूप से उठा पाएंगे।
समाज में उल्लास: तैयारियों का दौर प्रारंभ
चार माह के इस दिव्य अवसर को लेकर जैन समाज सहित समस्त नगर में आस्था, उत्साह और भक्ति का माहौल है। समाज के प्रमुख कार्यकर्ता और युवाओं की टोली चातुर्मास की व्यवस्थाओं को लेकर सतत सक्रिय है।
प्रतिदिन प्रवचन व्यवस्था
  • आराधना और स्वाध्याय के विशेष सत्र
  • संयम जीवन पर विशेष संवाद श्रृंखलाएं
  • पर्युषण पर्व और क्षमावाणी महोत्सव की तैयारियाँ
बामौरकलां का जैन समाज इस अवसर को केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि ‘धर्मोत्सव’ के रूप में मना रहा है।
एक दुर्लभ संयोग, जो इतिहास में दर्ज होगा
मुनि श्री उत्कृष्ट सागर जी महाराज के चातुर्मास का यह समय इस नगर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। दीक्षा के कुछ ही माह बाद, उनका प्रथम चातुर्मास किसी छोटे नगर में हो – यह अत्यंत दुर्लभ संयोग होता है। यह सिद्ध करता है कि इस भूमि पर पूर्व में भी धर्म, श्रद्धा और तपस्या के बीज रोपे गए थे।
सौभाग्य का यह समय बना लें साधना का पर्व
चार महीनों तक एक मुनिराज की सन्निधि में रहना, उनके उपदेशों को सुनना, आत्मसमीक्षा करना और संयम का अभ्यास करना – यह जीवन के उन दुर्लभ अवसरों में से एक होता है जो कर्मों से ही प्राप्त होता है।
बामौरकलां का जनमानस अब इस अवसर को साधनारूपी पर्व के रूप में स्वीकार कर चुका है। समाज, संयम और साधना – इन तीन स्तंभों पर खड़ा यह चातुर्मास नगर को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देगा।

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Raju Atulkar
Author: Raju Atulkar

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