साहब का अंदाज निराला : नेता बोले, लेकिन तालियां कलेक्टर साहब ने बटोरी!

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✍️ रिपोर्ट : राकेश कुमार जैन
जिला कलेक्ट्रेट के गलियारों में आज कुछ अलग ही माहौल था। मंच पर नेता, मंत्री और नगर की प्रतिष्ठित हस्तियां मौजूद थीं, लेकिन सबसे ज्यादा तालियां बटोरने वाले शख्स बने जिला कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा। जब उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि कोई भी शिक्षक बच्चों की पढ़ाई में कोताही न करे, तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा।
कलेक्टर साहब ने मंच से अपनी माँ की एक प्रेरणादायक कहानी सुनाई। उन्होंने बताया कि उनकी माँ भी शिक्षिका थीं और उन्होंने कभी एक भी पीरियड मिस नहीं किया। जब उनके सहयोगी उनसे पूछते कि वह इतनी मेहनत क्यों करती हैं, तो उनका जवाब होता, “मेरे बेटे को भी कोई पढ़ा रहा होगा।” इस कथन ने वहां बैठे हर व्यक्ति के दिल को छू लिया और तालियों की गड़गड़ाहट देर तक सुनाई देती रही।

सीईओ मैडम की दरियादिली से छलक पड़े आंसू

एक बेबस महिला जिला पंचायत की मुख्य कार्यपालन अधिकारी (CEO) अंजू पवन भदौरिया के पास अपनी व्यथा लेकर पहुंची। उसकी आँखों में आंसू थे, आवाज में दर्द था। “मैडम, मेरे दो छोटे बच्चे हैं। मेरे पति की करंट लगने से मौत हो गई, लेकिन पिछले छह महीनों से आवेदन दे रही हूँ, न तो मुआवजा मिला और न ही कोई कार्रवाई हुई।” इतना कहते ही वह फफक-फफक कर रो पड़ी।

सीईओ मैडम ने बिना एक पल गंवाए विद्युत विभाग के अधिकारियों को तलब किया और आदेश दिया कि इस महिला को तुरंत मुआवजा दिया जाए। उनकी त्वरित कार्रवाई देखकर वहां मौजूद लोग दंग रह गए। अफसरशाही में इंसानियत की झलक शायद इसी को कहते हैं!

जब बेटी ने प्रशासन से किए सवाल

पीएम श्री विवेकानंद कॉलेज की एक छात्रा अपने गांव की समस्याओं को लेकर सीधे कलेक्टर के पास पहुंची। पानी, सड़क, बिजली—हर बुनियादी सुविधा की दुर्दशा की पूरी फेहरिस्त उसने कलेक्टर को सौंप दी।

कलेक्टर साहब ने न सिर्फ उसकी बातें ध्यान से सुनीं, बल्कि तत्काल अधिकारियों को समाधान के निर्देश भी दिए। लड़की ने प्रशासन को धन्यवाद कहा और आत्मविश्वास के साथ वहां से रवाना हुई। इस नजारे को देखकर ऐसा लगा कि जब युवा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो जाएं, तो बदलाव निश्चित है!

धर्म परिवर्तन, अवैध शराब और दहेज प्रथा पर आदिवासी महिलाओं का हल्ला बोल

आज जिला कलेक्ट्रेट में आदिवासी महिलाओं का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने धर्म परिवर्तन, अवैध शराब की बिक्री और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों पर खुलकर आवाज उठाई। नारों की गूंज से पूरा परिसर गूंज उठा। महिलाओं का आरोप था कि गांवों में 50% से ज्यादा आदिवासी अपना धर्म बदल चुके हैं और अवैध शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। उन्होंने ज्ञापन सौंपते हुए प्रशासन से जल्द से जल्द कार्रवाई की मांग की।
महिलाओं के इस दृढ़ संकल्प को देखकर यही कहा जा सकता है—अब वे चुप नहीं बैठेंगी। यह बदलाव की लहर है, जो समाज को नई दिशा देने के लिए पूरी तरह तैयार है।
साहब का अंदाज निराला‘ में आज की यह रिपोर्ट बताती है कि प्रशासनिक अधिकारी केवल कुर्सियों पर बैठकर आदेश देने वाले नहीं होते, बल्कि सही मायनों में नेतृत्व वहीं दिखता है, जहां जनता की समस्याओं को सुना और सुलझाया जाता है।
कलेक्टर साहब के प्रेरक शब्द, सीईओ मैडम की संवेदनशीलता, जागरूक छात्रा की हिम्मत और आदिवासी महिलाओं की आवाज—इन सभी ने मिलकर यह संदेश दिया कि अगर शासन-प्रशासन और जनता मिलकर काम करें, तो कोई भी समस्या हल हो सकती है। यह बदलाव की शुरुआत है, और यह शुरुआत वाकई निराली है!


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