नदी का नाम था ऊर और सुबह पड़ी थी भोर और आप लोगों का मन ऐसे जैसे नाचने लगा मोर – मुनिश्री सौम्य सागर जी

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रिपोर्ट-अतुल कुमार जैन
बामौर कलां । मुनिश्री सौम्य सागर संसघ की भव्य मंगल आगवानी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर जैनपथ होटल में भव्य आरती का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
लोगों ने अपने घर-घर में मुनिश्री सौम्य सागर ,मुनिश्री निश्चल सागर व मुनिश्री निरापत सागर की आरती की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद आचार्य पूजन का आयोजन किया गया, जिसमें मुनिश्री सौम्य सागर संसघ ने श्रद्धालुओं को धार्मिक प्रवचन दिया और उन्हें जीवन में सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

इस अवसर मुनिश्री जी ने कहां दीक्षा के उपरांत पहली बार आज शिवपुरी जिले में आए! बीच में एक नदी थी जो शिवपुरी और अशोकनगर जिले के बीच में थी, और नदी का नाम थे ऊर और सुबह पड़ी थी भोर और आप लोगो का मन ऐसे जैसे नाचने लगा मोर ! अब गाड़ी छूटी है और रफ्तार पकड़ी है तो अब चैन पे लटकने से भी ज्यादा फायदा नहीं है! जितना मिल रहा है उसमे ही तुम चैन मानो इसी में सार्थकता है। जहां तक ऐसे जिनालयों की बात है इसकी भव्यता पूज्य बड़े महाराज सुधासागर के सानिध्य से सूर्य मंत्रो से चमत्कारित हुई है।

हम तो चाहते है एक बाजू में गोलकोट है और एक ओर है जिसका नाम बामौर है। किसका कितना क्या होने वाला है और भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है ये तो आप सब के पुण्य पर और पुरुषार्थ पर डिपेंड करेगा। कुछ लोग कह रहे थे हम तो 14 तारीख के बाद से ही डेरा डाल लेगे बिल्कुल डेरा डाल लो बसेरा डाल लो कुछ भी डाल लो लेकिन ऐसा अनुपम क्षेत्र गोलाकोट जो उल्लेखीय किया है गोलकोट के आस पास को समाजों ने और पूरे देश के दान दाताओं ने इसमें अपना उदार भाव उत्पन्न किया है वो कही अन्य क्षेत्रों के लिए अनुकरणी हो गया है। उसके कारण वह रोल मॉडल बन गया है जिसको देख करके लोग अपने क्षेत्रों को वैसा विकसित करना चाहते है। हमने न पूर्व में दर्शन किए है न अभी कर पा रहे है क्युकी दिशा कही ओर है ग्वालियर की ओर हैं और आपका संभाग है जिला अलग है भले ही। परंतु इतना जरूर कहना चाहते है की जिस भी प्रकार से ये भारतीय संस्कृति अपने जिनशासन की एकता को एक सुई में पिरोने के लिए तैयार हो रही है। ये जिनशासन कोई अलग से हट का शासन नहीं है ये तो सबके सर्वस्वीकर्ता का शासन है। आप रोज वेदी के नीचे देखते होगे कि सिंह और गाय एक ही घाट का पानी पीना सीख जाते है सिंह और गाय के एक साथ पानी पीने को हम बहुत बड़ा चमत्कार नही मानते क्योंकि जब प्यास लगी हो तो कोई ये नही देखता कौन अपना और कौन पराया पहले प्यास बुझा ली जाए कुंड में पानी रखा है। लेकिन उससे भी बड़ा दृश्य जब आपको देखने को मिलता कि सिंहनी का शावक गाय के थन से दूध पी रहा है और गाय का बच्चा सिंहनी का दूध पी रहा है ये बहुत अद्भुत दृश्य है। जबकि बछड़ा हजारों गायों में भी अपनी मां को पहचान लेता है और वहां तो एक ही गाय है तो वह कैसे भूल गया की मुझे अपनी मां का दूध पीना है या सिर्फ मां का दूध पीना है भेद भाव समाप्त हो जाए और केवल मातृत्व रह जाए ये वीतरगता के आभामंडल में ही संभव है। सिंहनी का दूध कभी भी वर्तन में नहीं ठहर सकता यह बात विज्ञान में सिद्ध है परंतु उसी सिंहनी का दूध नवजात कंठक में समाहित हो रहा है कैसे वह बछड़ा इसका धारक हों गया ये भी वीतरग्ता का एक चमत्कार है ये वितरागता उदासीनता का परिचय नहीं देती परंतु ये वीतरगता आपके अंदर एक ऐसी राख को छोड़ने का कारक बनती हे जो संसार में पदारने वाला हो जो संसार में डुबोने वाला हो जो संसार में फसाने वाला हो। लेकिन वो राग जो आपके जीवन ग्रहस्थ होने के बाद भी वीतरग्ता के प्रति भाव उत्पन्न कराता है वो उस दृश्य में जरूर देखने को मिलता है। कहा तो वीतरगी भगवान उस वेदिका में विराजमान है ओर कहा तो उसी वेदिका में दूसरा दृश्य देखने को मिलता है अगर यह वीतरगता होती तो चारो प्राणी सिंह गाय बछड़ा और सिंह का शावक चारो अलग थलग दिखते उसी वेदी में। लेकिन ऐसा वीतरागता का ऐसा राग इसी संसार को छोड़ने वाले राग को कारक बना लेकिन एक ऐसा राग बचाए रखा जो प्रशस्त रूप में होता है की अगर हम किसी को छोड़ना चाहते है तो अपेक्षाओं से ऊपर उठ जाए। किसी से मिलना चाहते है तो मन से ऊपर उठ जाते।

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