साथियों मैं आज आपके समक्ष रख रही हूं, एक ऐसा इंटरव्यू जो हिला सकता है, बहुतों का दिमाग व जला सकता है, दिमाग की बत्ती।
जी हां आज मेरा विषय है –
‘नशा एक अभिशाप : भ्रांतियां और हकीकत’
मित्रों नशा नाश का मूल है और यह किसी भी समाज के नकारात्मक विकास का पैमाना है।
क्योंकि एक बंदर होता है वह भी अपने बच्चों को साथ लेकर घूमता है लेकिन नशेड़ी व्यक्ति को अपनी मां, बहन व बेटी की इज्जत का भी भान नहीं रहता।
मैंने इस संदर्भ में नोटबंदी के तुरंत बाद ही मोदीजी को एक पत्र लिखा था, जिसमें मैंने एक शराबी का इंटरव्यू पेश किया था और लिखा था कि आप भले धरती और आसमान को भी ऊपर नीचे कर दो, लेकिन जब तक संपूर्ण भारत में व्यवहारिक तौर पर नशाबंदी नहीं होगी तब तक देश का भला नहीं हो सकता।
क्योंकि नशा नाश का मूल है व विनाश का कारण भी। और साथ ही प्रत्येक अपराध की जड़ भी।
लेकिन तब मुझे इसका कोई जवाब नहीं मिला था। इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरा वह इंटरव्यू आपके साथ भी सांझा करूं।
मैं : भाई शराब क्यों पीते हो?
शराबी : टेंशन आती है इसलिए।
मैं : भाई आपने कभी सोचा है कि आखिर टेंशन आती क्यों है ? भाई जब कोई समस्या होती है,तभी तो टेंशन आती है। और शराब पीकर आप उस समस्या को थोड़ी देर के लिए भूल जाते हो। नशा उतरने के बाद तो समस्या ज्यों की त्यों होती है। फिर टेंशन आएगी और फिर पीने जाओगे।
इस प्रकार नशा करने से टेंशन कभी खत्म नहीं होगी अपितु जो थोड़ी देर की थी, वह जिंदगी भर की हो जाएगी और जो समस्या आपके अकेले की थी, वह पूरे परिवार की जाएगी।
शराबी : हम तो सिर्फ टाइमपास करते हैं।
मैं : भाई टाइम को पास करने की कोई जरूरत नहीं है। उसे तो आप रोकना चाहोगे तो भी नहीं रोक पाओगे। आप सवेरे उठेंगे ही नहीं और पूरे दिन भर सोए रहेंगे, तब भी सवेरे से शाम हो जाएगी। इसलिए टाइमपास न करके टाइम के साथ चलना सीखो।
शराबी : आखिर एक दिन सबको मरना है।
मैं : भाई ये तो मैं भी जानती हूं कि आखिर एक दिन सबको मरना है, परंतु जब तक जीना है, तब तक शान से जीओ, इज्जत से जीओ, ऊंची गर्दन करके जीओ।
अन्यथा जो दारू पीकर जो नाली में पड़ा है, वह तो मरे हुए से भी बदतर है, क्योंकि कोई कुत्ता भी उसके मूंह में मूतकर जाए तब भी उसको तो लगता है कि वह तो पीया हुआ था फिर भी कोई और पिलाकर गया। और मैं तो बोलती हूं मरने का इतना शौक है तो एकदम से ट्रेन के नीचे आकर मर जाओ। जिससे सड़ – सड़कर नहीं मरना पड़ेगा। पैसा भी बर्बाद नहीं होगा, उस बचे हुए पैसों से परिवार का पालन – पोषण भी हो जाएगा और आपकी पत्नी भी जवान होगी तो दूसरा घर कर लेगी।*l
शराबी : हम तो पीते हैं लेकिन लिमिट में पीते हैं, पागल नहीं होते हैं।
मैं : भाई जो गाड़ी अच्छे से चलाना नहीं जानता है, वह धीरे-धीरे चलाता है परन्तु सीखने के पश्चात वह अधिकतम स्पीड से चलाता है और एक दिन अवश्य खड्डे में गिरकर दुर्घटना का शिकार होता है। और जो लोग पीकर पागल होते हैं, उनका तो मुझे कारण भी समझ में आता है कि वे पागल होने के लिए ही पीते हैं, लेकिन जिसको पागल नहीं होना है, फिर भी वह पीता है तो उससे मूर्ख कोई है नहीं, क्योंकि वह सिर्फ पैसा बिगाड़ रहा है।
शराबी : हमारे तो बुजुर्ग भी पीते आए हैं।
मैं : भाई आपके बुजुर्ग अनपढ़ थे, इसलिए अनजाने में सीखें थे और आप पढ़-लिखकर भी यही कर रहे तो आप अनपढ़ ही अच्छे थे। मां-बाप का पैसा क्यों बिगाड़ा। और आपको भी अपने बुजुर्गों जैसा ही बनना है तो वे तो धोती पहनते थे, फिर आप पेंट पहनने क्यों लग गए और अपने बच्चों को अंग्रेजी क्यों पढ़ा रहे ?
शराबी : हमारी देवी को धार लगानी पड़ती है।
मैं : भाई मूर्ति तो बोलती नहीं है, इसलिए जो भोपे और पुजारी नहीं खाते-पीते थे, उन्होंने बोल दिया कि हमारे भगवान को कुछ नहीं चलता है।
और जो लोग खुद खाने-पीने वाले थे, उन्होंने मूर्तियों को भी खाना पीना सीखा दिया।
शराबी : ज्यादा पैसा है, क्या करें ?
मैं : अरे भाई मैं आपको कंजूसी करने का नहीं बोल रही हूं। आप घी खाओ, दूध खाओ। मेवा और मिठाई खाओ लेकिन आदत लगाने वाला और स्वास्थ्य बिगाड़ने वाला कुछ मत खाओ।
मान लो जो व्यक्ति एक दिन में दो गुटखा का एक पुड़ी खाता है
दो सिगरेट पीता है, वह पूरे दिन में मात्र 10 रूपये बिगाड़ता है,
महिने में 300 रूपये बिगाड़ता है।
साल में 3600 रूपये बिगाड़ता है।
दस साल में 36000 रूपये बिगाड़ता है।
इस प्रकार वह अपनी जिंदगी में लाखों रूपये बिगाड़ता है। और ये तो मैंने सिर्फ प्रतिदिन 10 रूपये का ही हिसाब बताया है, अब जो लोग रोज का सौ – दो सौ रूपये नशे पर बर्बाद करते हैं, वे अपना हिसाब खुद लगाए।
अब ऐसे लोग अमूमन अपनी बेटियों की शादी के वक्त लोगों के सामने हाथ फैलाते नजर आते हैं।
मेरा उन लोगों से कहना है कि वह पैसा मान लो –
आप किसी अनाथ को भोजन कराने,
शिक्षा दिलाने के लिए खर्च करते,
किसी जरूरतमंद का ईलाज करा देते,
कहीं सार्वजनिक स्थान पर एक प्याऊ बना देते या एक बैठने का बैंच भी लगवा देते।
तो क्या आपके मां – बाप का नाम खराब हो जाता क्या ?
शराबी : कलियुग है, जमाना खराब है।
मैं : भाई जमाना तो काफी अच्छा है। पहले तो स्कूल, अस्पताल, गाडियां, टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर इत्यादि कुछ नहीं थे। इन सबके बिना आप सिर्फ एक साल जी कर बता दो। लेकिन जो दारू-सिगरेट नहीं पीते थे और गुटखा नहीं खाते थे, वे सौ साल जीते थे लेकिन आजकल के लोग जो पानी भले बिसलेरी का पीते हैं लेकिन दारू-सिगरेट पीते हैं व गुटखा खाते हैं, वे इतना जीने की उम्मीद भी नहीं करते और साठ साल में ही टांगें ऊपर कर देते हैं।
शराबी : आखिर सरकार बनाती क्यों है और फैक्ट्री बंद क्यों नहीं करती ?
मैं : भाई सरकार तो होशियार है। वह तो जहर बेचकर भी पैसा कमा रही है। पागल तो पीने वाले हैं, जो पैसा देकर जहर खरीद रहे हैं।
फैक्ट्री वाले भी इसलिए ही बनाते क्योंकि लोग पी रहे हैं। यदि लोग पीना छोड़ देंगे तो फैक्ट्री वाले क्या नदी में डालेंगे या उसका अचार बनायेंगे क्या ?
शराबी : फिर उस ठेके वाले के बच्चों का क्या होगा ?*
मैं : भाई तू उसके बच्चों का मत सोच और तेरे बच्चों का सोच। सभी अपने-अपने बच्चों के बारे में सोच लेंगे तो किसी को भी दूसरे के बच्चों के बारे में सोचने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
और जरूरी थोड़ी कि वह वही व्यवसाय करें।
भाई किसी की कटलेरी की दुकान नहीं चली तो किराणा की दुकान करता है या मिठाई की दुकान नहीं चली तो मेडिकल की दुकान करता है तो फिर ठेके वाले का क्या उसी का ही ठेका ले रखा है क्या ?
शराबी : अमुक नेता भी पीता है।
मैं : भाई वह पीएगा तो उसका तन, मन, धन बिगड़ेगा और आप पीएंगे तो आपका।*अब आपका फैसला आपको करना है।
शराबी : सरकार को आय कैसे होंगी ?
मैं : भाई सरकार की आंखें भी अभी तक गर्दन के पीछे है। वह भी सोचती है कि इससे उसको आय होती है। लेकिन शराब पीने वाले असामाजिक तत्वों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को पहुंचाया गए नुकसान का अगर आंकलन किया जाए तो वह उसके मुनाफे से कई गुना ज्यादा होता है।
शराब पीकर जो लोग लड़ाई – झगड़ा, मारपीट – हत्या ,उत्पीड़न इत्यादि जो करते हैं, वह नुकसान इसके मुनाफे से भी ज्यादा है।
सरकार विभिन्न प्रकार के नशों से होने वाली गंभीर बीमारियों का फ्री ईलाज करवाती है या निशुल्क दवाइयां देती है। नशामुक्ति के माध्यम से उसे भी बचाया जा सकता है।
जो युवा दारू पीकर 20-30 साल की आयु में ही दुर्घटना का शिकार हो जाता है, वह अपने परिवार, समाज व राष्ट्र का विकास कैसे कर सकता है ?
शराबी : लेकिन मेरी तो आदत पड़ गई है।
मैं : भाई ये आदत क्या जन्म से थी क्या ? यह आदत आपने लगाई है तो सुधारनी भी आपको ही पड़ेगी।
जो व्यक्ति अपनी गलत आदत में आवश्यकतानुसार सुधार नहीं कर सकता, वह बिना सींग – पूंछ वाला पशु है।
अंत में मेरी सभी महिलाओं से करबद्ध विनती है कि आप नशेड़ी पुरूषों का साथ तुरंत छोड़ दें और कोई दूसरा नशामुक्त साथी ढूंढ ले।
मैं जानती हूं एक बार आपको अवश्य परेशानी होगी लेकिन आजीवन शांति व शुकून मिलेगा।
विशेष नोट : मोबाइल, प्यार या पैसे के पीछे अपना होश खोकर पागल हो जाना भी एक प्रकार का नशा ही है।
प्रत्येक वह क्रियाकलाप नशा है जिसकी हमें बार-बार तलब लगती है, आदी बनाती है, उसका गुलाम बनाती है।
कुदरत में सिर्फ एक ही नशा फायदे का है, वह है सिर्फ भक्ति या परोपकार का नशा। यहां भक्ति का अभिप्राय भी पाखंड से नहीं अपितु सिर्फ़ सेवाभाव से ही है।
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Author: Tejas Reporter
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