मानव तस्करी : मजदूरी के नाम पर शोषण और अत्याचार, परिवारों ने लगाई न्याय की गुहार, सहरिया क्रांति ने उठाई आवाज

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रिपोर्ट-अतुल कुमार जैन
शिवपुरी जिले के सुरवाया थाना क्षेत्र के भड़ावावड़ी गांव से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां चार गरीब आदिवासी मजदूरों को बेहतर मजदूरी और सुविधाओं का लालच देकर गुजरात के हिम्मतनगर ले जाया गया और बंधक बना लिया गया। यह मामला मानव तस्करी के गंभीर मामले को उजागर करता है।
परिजनों का आरोप है कि अनूप राजपूत उर्फ सुशील नामक दलाल ने इन मजदूरों को हर महीने 20-20 हजार रुपये वेतन और रहने-खाने की सुविधाएं देने का वादा किया था। लेकिन वहां पहुंचने पर मजदूरों को अमानवीय परिस्थितियों में रखा गया। उनका मानसिक और शारीरिक शोषण किया गया। इतना ही नहीं, उनके मोबाइल फोन छीन लिए गए, जिससे वे अपने परिवारों से संपर्क तक नहीं कर सके।

  • गुजरात में बंधक बने चार आदिवासी, परिजन कर रहे न्याय की गुहार
  • मजदूरी के नाम पर शोषण: मोबाइल छीने, शारीरिक प्रताड़ना दी गई
  • शिवपुरी से मानव तस्करी का खुलासा, पुलिस पर कार्रवाई में लापरवाही का आरोप
  • दलाल का धोखा : 20 हजार के वादे पर बंधक बने आदिवासी मजदूर
  • सहरिया क्रांति ने की पुलिस से त्वरित कार्रवाई की मांग

पुलिस की लापरवाही 

पीड़ितों के परिजन जब शिकायत लेकर सुरवाया थाने पहुंचे तो उनकी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया। पुलिस ने उन्हें खुद जानकारी जुटाने की सलाह देकर उनकी उम्मीदें तोड़ दीं। परिवारों का कहना है कि स्थानीय लोग, रघुवीर और भागवती आदिवासी, इस साजिश में दलाल का साथ दे रहे हैं।

एक गार्ड की मदद से मिली जानकारी

मजदूरों के परिवारों को एक महिला गार्ड ने अपने मोबाइल के जरिए संपर्क करने का मौका दिया। मजदूरों ने इस बातचीत में अपनी दर्दभरी दास्तां बयां करते हुए कहा कि उनकी जान खतरे में है और वे किसी भी तरह वहां से निकलना चाहते हैं। लेकिन पुलिस प्रशासन की सुस्त कार्रवाई ने उनकी चिंता और बढ़ा दी है।

सहरिया क्रांति ने उठाई आवाज

सहरिया क्रांति के संयोजक संजय बेचैन ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह घटना आदिवासी समाज के शोषण और अत्याचार का ज्वलंत उदाहरण है। उन्होंने पुलिस और प्रशासन से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की ताकि पीड़ितों को सुरक्षित वापस लाया जा सके।

क्या होगा न्याय?

थाना प्रभारी ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई का भरोसा दिया है। लेकिन यह देखना बाकी है कि प्रशासन आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई करेगा या यह मामला भी कई अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।

समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी

यह घटना साफ तौर पर दर्शाती है कि गांवों के गरीब आदिवासी अभी भी मानव तस्करी और शोषण का शिकार हो रहे हैं। प्रशासन की निष्क्रियता केवल उनके हालात को बदतर बना रही है। यह वक्त है कि पुलिस और स्थानीय प्रशासन ठोस कदम उठाकर आदिवासी समाज के विश्वास को बहाल करें।

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