रिपोर्ट : सूरज मेहरा
Harda (M.P.) | मध्यप्रदेश के हरदा जिले के खिरकिया ब्लॉक स्थित आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा संचालित आदिवासी सीनियर बालक छात्रावास, मोरगढ़ी में बच्चों के स्वास्थ्य और अधिकारों के साथ खिलवाड़ का मामला उजागर हुआ है। तेजस रिपोर्टर की टीम द्वारा की गई ग्राउंड रिपोर्ट में छात्रावास में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है, जो बच्चों के जीवन पर गहरा असर डाल रही हैं।
मेनू पर भोजन नहीं, कच्चा खाना परोसा
छात्रों ने खुलकर शिकायत की कि उन्हें निर्धारित मेनू के अनुसार पोषणयुक्त भोजन नहीं दिया जाता। अक्सर उन्हें ऐसा खाना परोसा जाता है जो अधपका होता है और खाने लायक भी नहीं। परिणामस्वरूप, कई छात्रों पर बीमारियों का खतरा मंडराने के संकेत दिखाई देते हैं और उनकी पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
हम यहां बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उनके उनका परिचय देना उचित नहीं समझते, लेकिन हमारे पास पर्याप्त साक्ष्य हैं जो छात्रावास में व्याप्त अव्यवस्थाओं की सच्चाई को उजागर करते हैं।
10 साल से अधीक्षक, लेकिन जवाब गोलमोल :

जब इस विषय पर छात्रावास के अधीक्षक राम भरोसे परमार से सवाल किया गया, तो उन्होंने गोलमोल जवाब देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश की। चौंकाने वाली बात यह है कि यह अधीक्षक पिछले 10 वर्षों से इसी छात्रावास में पदस्थ हैं। इस दौरान आई अनियमितताओं और बच्चों की दुर्दशा पर उनकी चुप्पी ने उनकी भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
स्वच्छता और सुविधाओं का घोर अभाव :

छात्रावास में केवल भोजन ही नहीं, बल्कि मूलभूत सुविधाओं का भी घोर अभाव है। छात्रों ने बताया कि पीने के पानी की उचित व्यवस्था तक नहीं है। वे खुद पानी भरकर अपने कमरों में रखते हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव :
यह मामला न केवल बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहा है, बल्कि उनकी शिक्षा पर भी गहरा असर पड़ रहा है। जब एक बच्चा बुनियादी जरूरतों से जूझ रहा हो, तो उसकी पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करना लगभग असंभव हो जाता है।
जिम्मेदारों पर कार्रवाई कब? :
यह स्पष्ट है कि आदिम जाति कल्याण विभाग और छात्रावास प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण बच्चों का भविष्य खतरे में है। इस मामले की तत्काल उच्चस्तरीय जांच और दोषियों पर कठोर कार्रवाई जरूरी है।
ऐसे में यदि जल्द ही इस स्थिति में छात्रावास प्रबंधन द्वारा सुधार नहीं किया गया, तो तेजस रिपोर्टर की टीम इस मामले को आला अधिकारियों और सरकार के संज्ञान में लेकर आएगी।
निश्चित ही समय आ गया है कि सिस्टम सुधरे और बच्चों को उनका अधिकार मिले। अब देखना बांकी है, कि जिम्मेदार जागेंगे या आदिवासी बच्चों का भविष्य ऐसे ही अंधकार में रहेगा?
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Author: Tejas Reporter
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