रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | शासन की योजनाओं का उद्देश्य जब आमजन तक नहीं पहुंच पाता, तो सवाल उठता है कि गलती व्यवस्था में है या जिम्मेदारों में। ऐसा ही एक मामला खनियाधाना तहसील के फूड ऑफिस से सामने आया है, जहां कार्यालय का संचालन सरकारी कर्मचारियों के बजाय प्राइवेट लोगों के हाथों में है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, फूड ऑफिस में न तो कोई अधिकारी तैनात है और न ही कोई स्थायी कर्मचारी। इसके बावजूद, कार्यालय में कामकाज जारी है — वह भी पूरी तरह निजी व्यक्तियों द्वारा। बताया जाता है कि यह लोग न तो शासन द्वारा अधिकृत हैं और न ही इनके पास कोई शासकीय आदेश है, बावजूद इसके, राशन वितरण से लेकर फाइलों के प्रबंधन तक सारा काम इन्हीं के माध्यम से किया जा रहा है।
मनमानी से चल रहा कार्यालय
कार्यालय की स्थिति यह है कि लाभार्थियों को अपनी पात्रता पर्ची, कार्ड सुधार या राशन वितरण से जुड़ी छोटी-छोटी प्रक्रियाओं के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। कई बार यह भी शिकायत सामने आई है कि गरीबों से फाइलें आगे बढ़ाने के नाम पर अनौपचारिक रूप से पैसे तक मांगे जाते हैं।
संसाधनों का भारी अभाव
कार्यालय में बुनियादी सुविधाओं का भी गंभीर अभाव है। न कंप्यूटर पूरी तरह चालू हालत में हैं, न प्रिंटर कार्यरत। बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थिति भी बेहद खराब है। यही कारण है कि कई बार ऑनलाइन पोर्टल पर जरूरी एंट्रियां समय पर नहीं हो पातीं, और इसका सीधा असर राशन वितरण पर पड़ता है।
गरीबों को हो रही भारी परेशानी
राशन कार्ड धारकों का कहना है कि पिछले कई महीनों से उन्हें नियमित रूप से राशन नहीं मिल पा रहा है। कभी कोटा नहीं आया बताया जाता है, तो कभी सर्वर डाउन होने का बहाना बना दिया जाता है। ऐसे में गरीब और वंचित परिवारों को अपने हक के अनाज के लिए कई-कई दिनों तक चक्कर काटने पड़ते हैं।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि प्रशासन की अनदेखी के कारण ही यह स्थिति बनी हुई है। फूड ऑफिस में शासकीय कर्मचारियों की नियुक्ति न होना और कार्यों का निजी हाथों में चले जाना शासन व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
जांच और कार्रवाई की मांग
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शासन से मांग की है कि फूड ऑफिस में चल रही अनियमितताओं की जांच कराई जाए। साथ ही, यहां स्थायी अधिकारी और कर्मचारी की तैनाती हो ताकि राशन वितरण की प्रक्रिया पारदर्शी और सुचारू रूप से चल सके।
शासन के लिए बड़ा सबक
खनियाधाना का यह उदाहरण सिर्फ एक कार्यालय का नहीं, बल्कि उन कई सरकारी व्यवस्थाओं का प्रतीक है जो बिना निगरानी और जिम्मेदारी के चल रही हैं। यदि शासन समय रहते ऐसे मामलों पर संज्ञान नहीं लेता, तो इसका सीधा असर उन गरीब परिवारों पर पड़ता रहेगा जिनके लिए ये योजनाएं बनी हैं।
“सरकार गरीबों के हक की योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन जब निगरानी कमजोर हो, तो वही योजनाएं भ्रष्टाचार और मनमानी का अड्डा बन जाती हैं।”
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Author: Raju Atulkar
"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल
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