मलक्का जलडमरूमध्य पर भारत-सिंगापुर का रणनीतिक सहयोग: एक नई सामरिक दिशा

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आलेख – कमलेश मीणा (भोपाल)
प्रस्तावना
विश्व राजनीति और भू-रणनीतिक समीकरणों में समुद्री मार्गों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती जा रही है। ऐसे में दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित मलक्का जलडमरूमध्य (Strait of Malacca) का विशेष महत्व है, जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर को जोड़ने वाला सबसे संकीर्ण और व्यस्त जलमार्ग है। हाल ही में भारत और सिंगापुर के बीच इस जलडमरूमध्य में संयुक्त गश्त (Joint Patrol) का एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ है, जिसने पूरे एशियाई क्षेत्र में नई कूटनीतिक और सामरिक चर्चाओं को जन्म दिया है। यह समझौता न केवल क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा को बल देगा, बल्कि चीन की रणनीतिक चिंताओं को भी बढ़ा सकता है।
मलक्का जलडमरूमध्य: सामरिक और आर्थिक महत्व
मलक्का जलडमरूमध्य एक संकीर्ण समुद्री गलियारा है, जो मलेशिया और इंडोनेशिया के बीच से होकर गुजरता है और सिंगापुर को बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है। यह जलमार्ग:
विश्व के लगभग 40% समुद्री व्यापार का वाहक है।
प्रतिदिन 70,000 से अधिक जहाज इस मार्ग से गुजरते हैं।
चीन, जापान और कोरिया जैसे देशों का तेल और ऊर्जा आयात मुख्यतः इसी मार्ग से होता है।
इस जलमार्ग को ‘चिकन नेक ऑफ चाइना’ (China’s Chicken Neck) भी कहा जाता है, क्योंकि चीन की ऊर्जा निर्भरता का एक बड़ा हिस्सा इसी मार्ग पर टिका है।
भारत-सिंगापुर समझौता: एक रणनीतिक कदम
भारत और सिंगापुर के बीच हुआ यह समझौता इस क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. संयुक्त समुद्री गश्त: दोनों देश अब मलक्का जलडमरूमध्य में नियमित रूप से संयुक्त गश्त करेंगे, जिससे समुद्री डकैती, अवैध व्यापार, और अन्य अपराधों पर नियंत्रण रखा जा सकेगा।
2. सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ करना: यह समझौता दोनों देशों की नौसेनाओं के बीच आपसी तालमेल और सूचना साझा करने को और अधिक प्रभावी बनाएगा।
3. चीन की रणनीतिक घेराबंदी: इस कदम को चीन की समुद्री गतिविधियों पर निगरानी के रूप में देखा जा रहा है, जिससे उसकी “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” नीति पर अंकुश लग सकता है।
चीन की चिंता: ऊर्जा और सुरक्षा संकट की आशंका
चीन के लिए मलक्का जलडमरूमध्य एक रणनीतिक जीवनरेखा है। इसके मुख्य कारण हैं:
ऊर्जा निर्भरता: चीन के कुल तेल आयात का 80% से अधिक हिस्सा इसी जलमार्ग से आता है।
व्यापारिक निर्भरता: चीन का लगभग आधा समुद्री व्यापार मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।
सामरिक खतरा: यदि किसी संकट की स्थिति में यह मार्ग बंद हो जाए, तो चीन की आर्थिक और सामरिक स्थिति गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है।
इसलिए चीन वैकल्पिक मार्ग जैसे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) और म्यांमार के क्यौकफ्यू पोर्ट पर काम कर रहा है, ताकि मलक्का पर निर्भरता कम की जा सके।
भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और समुद्री रणनीति
यह समझौता भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत किया गया एक बड़ा रणनीतिक कदम है। इसके माध्यम से भारत:
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है।
क्षेत्रीय सहयोगियों जैसे जापान, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया के साथ रणनीतिक साझेदारी को और प्रगाढ़ कर रहा है।
नौसेना की उपस्थिति को हिंद महासागर से आगे बढ़ाकर दक्षिण चीन सागर तक विस्तारित कर रहा है।
भारत और सिंगापुर का यह साझा कदम केवल एक सैन्य समझौता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश है — कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित व्यवस्था, क्षेत्रीय संतुलन और समुद्री स्वतंत्रता को किसी भी कीमत पर बनाए रखा जाएगा। मलक्का जलडमरूमध्य पर भारत की सक्रियता चीन के लिए चेतावनी है कि अब वह अपने व्यापारिक और ऊर्जा मार्गों को लेकर पूरी तरह से सुरक्षित नहीं है।
यह कदम भारत को एक उत्तरदायी वैश्विक शक्ति और सुरक्षा प्रदाता के रूप में स्थापित करता है। भविष्य में इस सहयोग के और विस्तार की संभावनाएं हैं, जो भारत की सामरिक कूटनीति को और अधिक सशक्त बनाएंगी।

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Raju Atulkar
Author: Raju Atulkar

तेजस रिपोर्टर डिजिटल के लिए काम करता हूं। पत्रकारिता में साल 2015 से सफर की शुरुआत की। अब समसामयिक विषयों पर खबरें लिखने में रुचि रखता हूं।

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