रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | आज बेटियां शिक्षा, खेल और विज्ञान सहित हर क्षेत्र में देश का नाम रोशन कर रही हैं, लेकिन समाज के कुछ वर्ग और परिवार आज भी बेटियों को अभिशाप मानते हैं। शिवपुरी जिले के ग्राम खांदी से आई एक दर्दनाक घटना ने इस सोच को फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। यहां महज 1 साल 3 माह की मासूम दिव्यांशी धाकड़ को उसके परिजनों ने बेटी होने की वजह से समय पर इलाज नहीं दिया। नतीजतन, बच्ची कुपोषण का शिकार हो गई और आखिरकार शनिवार को जिला अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
बार-बार समझाइश, फिर भी इलाज से इंकार
इस मामले में सीएमएचओ डॉ. संजय ऋषिश्वर ने बताया कि बच्ची को 1 अगस्त को ‘दस्तक अभियान’ के तहत कुपोषित के रूप में चिन्हित किया गया था। परिवार को कई बार अस्पताल में भर्ती कराने के लिए समझाइश दी गई। यहां तक कि पंचायत बुलाकर मोहल्ले और पड़ोसियों ने भी परिवार को समझाया। शुरुआत में बच्ची को सतनवाड़ा स्वास्थ्य केंद्र भर्ती कराया गया और फिर जिला अस्पताल रेफर किया गया। वहां से बच्ची को मेडिकल कॉलेज तक ले जाया गया। इलाज मिलने के बाद हालत कुछ स्थिर भी हुई। लेकिन जब बच्ची को एनआरसी ले जाने की सलाह दी गई तो स्वजन उसे वहां न ले जाकर सीधे घर ले गए।
मासूम की हालत थी बेहद नाजुक
उम्र : 1 साल 3 माह
वजन : सिर्फ 3.7 किलो
हिमोग्लोबिन : 7.4 ग्राम
एमयूसी टेप माप : 6.4 सेमी
डॉक्टरों के मुताबिक, ये आंकड़े बताते हैं कि बच्ची गहरे गंभीर कुपोषण का शिकार थी। समय पर और निरंतर इलाज मिलने पर उसकी जान बच सकती थी।
“लड़की है, मर जाने दो” – सास का दबाव
दिव्यांशी की मां खुशबू धाकड़ ने रोते हुए बताया कि बेटी के जन्म के बाद से ही सास ने उसे तिरस्कृत करना शुरू कर दिया था। जब बच्ची बीमार पड़ती तो सास इलाज कराने से रोक देती और कहती – “लड़की है, मर जाने दो।”
खुशबू ने बताया कि पति और देवर से इलाज की गुहार लगाने पर वे मारपीट करते थे। पांच माह मायके में रहने के बाद जब वह लौटी, तभी बच्ची की हालत बेहद गंभीर हो चुकी थी।
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Author: Raju Atulkar
"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल
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