रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | शनिवार दोपहर बैराड़ कस्बे में जो दृश्य सामने आया, उसने न सिर्फ इंसानियत को शर्मसार कर दिया, बल्कि कानून-व्यवस्था और राजनीतिक हस्तक्षेप की सीमाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। एक युवक को कथित तौर पर भाजपा नेताओं की मौजूदगी में ऐसी ‘तालीबानी सजा’ दी गई, जिसमें उसे माफी मांगने के लिए जूता सिर पर रखना पड़ा।
चौंकाने वाली बात यह है कि यह पूरा घटनाक्रम बैराड़ थाने के ठीक सामने हुआ और वहां उपस्थित पुलिस ने इस अपमानजनक कृत्य को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। इतना ही नहीं, वीडियो इंटरनेट मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं, लेकिन फिर भी पुलिस और प्रशासन मौन हैं।
क्या है मामला?
प्राप्त जानकारी के अनुसार, बैराड़ निवासी व्यवसायी मनीष गुप्ता का पुत्र सार्थक और पूर्व में जिलाबदर रह चुका सुल्तान रावत का पुत्र कुलदीप आपस में तालाब पर किसी बात को लेकर उलझ गए थे। यह विवाद बीते दिनों शुरू हुआ था जब सार्थक और उसके साथियों ने कुलदीप के साथ हाथापाई कर दी थी।
उस समय कुलदीप ने थाने में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई, लेकिन दोनों पक्षों में रंजिश बनी रही। हालात इस कदर बिगड़े कि शनिवार को समझौते के नाम पर एक तरह की ‘पंचायत’ बुलाई गई, जिसमें पूर्व विधायक एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश राठखेड़ा, भाजपा मंडल महामंत्री पवन गुप्ता, और अन्य स्थानीय राजनेता व समाजसेवी उपस्थित रहे।
‘सुलह’ या सार्वजनिक अपमान?
पंचायत के फैसले के अनुसार, सार्थक को विवाद खत्म करने के लिए कुलदीप और उसके भाई छोटू रावत के जूते सिर पर रखकर माफी मांगनी पड़ी। वायरल वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है कि युवक नीचे बैठा है, उसके सिर पर जूते रखे हुए हैं और वह हाथ जोड़कर माफी मांग रहा है।
यह घटना न केवल कानून और मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक मर्यादा और सार्वजनिक गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य भी है।
विरोधाभासी बयान और चुप्पी
घटना को लेकर सभी पक्षों की प्रतिक्रियाएं एक-दूसरे से मेल नहीं खा रही हैं:
सार्थक का कहना है कि वह विवाद खत्म होने से ‘खुश’ है और अब कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
पूर्व मंत्री सुरेश राठखेड़ा का कहना है कि वह तो सिर्फ राजीनामा करवाने रुके थे, और उनके सामने ऐसी कोई घटना नहीं हुई।
बैराड़ टीआई रविशंकर कौशल ने घटना से साफ इनकार कर दिया है।
पवन गुप्ता का फोन बंद है।
कुलदीप के भाई छोटू रावत ने कहा कि यह “घर का मामला” था और वीडियो को एडिट कर सोशल मीडिया पर फैलाया गया है।
प्रशासन और कानून पर सवाल
घटना थाने के सामने हुई, नेताओं की मौजूदगी में हुई, वीडियो वायरल हो रहा है — फिर भी प्रशासन आंख मूंदे बैठा है। क्या यह सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों के लिए अलग मानदंड का संकेत नहीं देता?
मानवाधिकार और सामाजिक संगठनों की चुप्पी भी चौंकाने वाली
इस प्रकार की घटनाएं समाज में कानून के स्थान पर ‘भीड़ न्याय’ और ‘राजनीतिक दबाव’ के खतरनाक संकेत देती हैं। यदि समाज के प्रभावशाली वर्ग इस तरह की सजा देने लगें, तो आम नागरिक की गरिमा और न्याय की उम्मीद कहां टिकेगी?
इस मामले में निष्पक्ष जांच, प्रशासनिक हस्तक्षेप और दोषियों पर सख्त कार्रवाई बेहद जरूरी है। नहीं तो यह घटना एक खतरनाक मिसाल बन सकती है, जिसमें ‘पंचायत’ और ‘सम्मान की सजा’ के नाम पर लोगों को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जाता रहेगा, और संविधान, कानून और मानवता ताक पर रख दिए जाएंगे।
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Author: Raju Atulkar
"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल
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