रायसेन के सरकारी स्कूलों का काला सच : देर से खुलते स्कूल, जल्दी होती छुट्टी – बच्चों का भविष्य अधर में!

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✍️ रिपोर्ट : पदम सिंह लोवंशी
रायसेन, मध्यप्रदेश | राजधानी भोपाल से सटे रायसेन जिले के सरकारी स्कूलों में इन दिनों कुछ अलग ही ‘पाठ’ पढ़ाया जा रहा है — अनुशासनहीनता का पाठ!
तेजस रिपोर्टर की पड़ताल में सामने आया कि कई सरकारी स्कूलों में समय की धड़ल्ले से अनदेखी हो रही है। कहीं स्कूल समय से घंटों बाद खुलते हैं, तो कहीं आधी छुट्टी में बच्चों को चलता कर दिया जाता है।

इससे न सिर्फ बच्चों की पढ़ाई चौपट हो रही है, बल्कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था की साख भी सवालों के घेरे में है।

समय से पहले बंद होने वाले स्कूल :

  • शासकीय प्राथमिक/माध्यमिक शाला, रोजड़ाचक
  • मिडिल स्कूल, रसूलिया
अभिभावकों में गहरी नाराजगी है। उनका कहना है –
“बच्चों की पढ़ाई के नाम पर सरकार बजट देती है, योजनाएं चलाती है… लेकिन जब स्कूल ही समय पर नहीं चलते, तो बाकी सब छलावा लगता है।”
मीडिया को भी रोका गया, तो बच्चों की आवाज़ कौन सुनेगा?
ग्राम कीरत नगर के गांव गोकलाकुंडी में स्थित सरकारी प्राथमिक शाला में शिक्षक कैलाश मीणा ने मीडिया को स्कूल में प्रवेश करने से मना कर दिया। उनका कहना था-
“सीनियर अधिकारियों के निर्देश हैं कि मीडिया अंदर नहीं आ सकती।”

बड़े सवाल :

जब मीडिया को ही बाहर रखा जाएगा, तो इन नन्हे बच्चों की आवाज़ कौन उठाएगा?
और ये आदेश दिए किसने हैं? क्या अब स्कूल लापरवाही छिपाने की जगह बन गए हैं?
क्या नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षक ही नैतिकता भूल चुके हैं?

टपकती छतों के नीचे शिक्षा का संघर्ष :

गांव नयापुरा के प्राथमिक स्कूल में हालात और भी बदतर हैं। नई इमारत की छत से लगातार पानी टपकता है। बच्चे और शिक्षक दोनों भीगते हुए पढ़ाई करने को मजबूर हैं।
छात्रों के लिए ये स्कूल ‘ज्ञान का मंदिर’ कम, ‘जल संकट ग्रस्त शरणालय’ ज्यादा लगते हैं।
स्कूल की शिक्षिका कहती हैं –
“मैंने गांव के सरपंच और विभाग को कई बार सूचित किया। हमारी मेडम सुशीला कीर ने भी इस मुद्दे को उठाया। लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। अब तो तिरपाल लगाकर पढ़ाना पड़ेगा।”
ऐसे में सवाल यह है-
क्या सरकारी भवनों के उद्घाटन फोटो तक ही सीमित रह गए हैं?
क्या ग्रामीण बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य निरंतर उपेक्षा के शिकार रहेंगे?

आधे दिन की पढ़ाई, पूरे भविष्य की कीमत :

कुछ स्कूल तो दिन के आधे समय में ही कक्षाएं समाप्त कर देते हैं। इससे बच्चों की आदतें बिगड़ रही हैं, पाठ्यक्रम अधूरा रह जाता है और अनुशासन नाम की चीज़ गायब हो जाती है।

प्रशासन क्या कर रहा है?

जब इस गंभीर मामले पर ओबेदुल्लागंज ब्लॉक के BRC सतीश कुशवाहा से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा –
“मामले को जनशिक्षक और संकुल प्राचार्य को बताएं, वे देखेंगे।”
लेकिन जब जनशिक्षक अधिकारी नितेश कौरव से संपर्क किया गया, तो उन्होंने फोन उठाना तक ज़रूरी नहीं समझा।

तेजस रिपोर्टर की माँग : सख़्त कार्यवाही हो

तेजस रिपोर्टर की स्पष्ट माँग है कि :
जिन स्कूलों में समय की लापरवाही, मीडिया प्रतिबंध, और बच्चों की दुर्दशा सामने आई है — उनके खिलाफ तत्काल जांच व सख़्त कार्यवाही हो।

समय की पाबंदी — शिक्षा की पहली सीढ़ी होती है। जब स्कूल ही बच्चों को अनुशासन और जिम्मेदारी का पाठ नहीं पढ़ाएंगे —
तो देश का भविष्य मजबूत कैसे बनेगा?
सरकारें आएंगी, जाएंगी —
लेकिन इन बच्चों की किस्मत और सपना वहीं का वहीं रह जाएगा, अगर स्कूलों के दरवाजे समय पर नहीं खुलेंगे।

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