रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुर | जिले की बदरवास तहसील के नेगमा गांव में शिक्षा भगवान भरोसे!
जहां सरकारें बच्चों को स्मार्ट क्लास देने की बात करती हैं, वहीं यहां बच्चे दो साल से बिना छत के, कभी मंदिर की सीढ़ियों पर तो कभी खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करने को मजबूर हैं। यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, यह उस तंत्र की असलियत है जो फाइलों में तो दुरुस्त दिखता है लेकिन ज़मीनी हालातों में पूरी तरह नंगा है।
मंदिर बना विद्यालय, खुले आसमान में भविष्य की नींव
वार्ड क्रमांक-1 में स्थित दो सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की छतें दो साल पहले गिर चुकी हैं। तब से न कोई निर्माण, न कोई मरम्मत। हरिजन बस्ती के बच्चों को खुले में धूप और बारिश के बीच बैठना पड़ता है, वहीं दूसरे स्कूल के छात्र मंदिर में पढ़ाई करते हैं। सोचिए, एक ओर आरती की घंटियां, दर्शनार्थियों की आवाजाही, दूसरी ओर मासूमों की किताबें – कैसी पढ़ाई होगी ऐसे माहौल में?
जनप्रतिनिधियों ने देखा, अफसरों ने सुना – पर किसी ने कुछ नहीं किया
गांव के पार्षद उमेश उपाध्याय और ग्रामीण अर्जुन लोधी की पीड़ा बयां करती है कि शिकायतें हर स्तर तक पहुंचाई गईं। विधायक महेन्द्र सिंह यादव खुद विद्यालय की दुर्दशा को देख चुके हैं, लेकिन न विधायक निधि से कोई राशि आई, न शासन स्तर से कोई ठोस पहल हुई। यह चुप्पी क्या इस बात का संकेत है कि बच्चों की शिक्षा अब राजनीति के एजेंडे में नहीं रही?
‘फंड भेजा है’ की रटी-रटाई कहानी
डीपीसी डीएस सिकरवार का बयान है कि एक स्कूल के लिए ₹1.34 लाख की मरम्मत राशि स्वीकृत हो चुकी है। लेकिन यह रकम नाकाफी है और एक स्कूल की मरम्मत से गांव की समस्या हल नहीं होगी। ये प्रयास नहीं, औपचारिकता भर हैं। सवाल यह है कि दो साल से इस प्रस्ताव को अमलीजामा क्यों नहीं पहनाया गया?
शिक्षा नहीं, संवेदना भी टूट रही है
शासन की यह बेरुखी केवल स्कूल की छत गिरने की नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था के चरमराने की बानगी है। यदि गांव का एक भी बच्चा शिक्षा से वंचित होता है, तो यह केवल नेगमा नहीं, पूरे तंत्र की हार है। आज मंदिर में किताबें खुल रही हैं, कल मजबूरी में मजदूरी करने को मजबूर हो जाएंगे ये बच्चे।
समाधान शासन से नहीं, अब समाज से निकलेगा!
जब सरकारें आंख मूंद लें तो गांव वालों को ही आगे आना होगा। पंचायत, स्कूल समिति, शिक्षकों और जागरूक नागरिकों को मिलकर आपसी सहयोग से स्कूलों की मरम्मत, अस्थायी टीन शेड निर्माण या वैकल्पिक भवन की व्यवस्था करनी होगी। जब समाज खुद उठ खड़ा होता है, तभी व्यवस्था को झकझोरने की ताकत पैदा होती है।
शिक्षा सिर्फ दीवारों और छतों तक सीमित नहीं, लेकिन बुनियादी ढांचे के बिना शिक्षा की नींव कमजोर हो जाती है। नेगमा जैसे गांवों की यह कहानी प्रशासन की नींद तोड़ने वाली होनी चाहिए। लेकिन अगर वे नहीं जागते, तो अब गांव को ही जागना होगा।
क्योंकि अगर आज हम नहीं बोले, तो आने वाली पीढ़ियों को मौन का मूल्य चुकाना पड़ेगा।
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Author: Raju Atulkar
तेजस रिपोर्टर डिजिटल के लिए काम करता हूं। पत्रकारिता में साल 2015 से सफर की शुरुआत की। अब समसामयिक विषयों पर खबरें लिखने में रुचि रखता हूं।
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