हवा महल में रंगों की नई बहार: जयपुर का ‘हवाओं का महल’ फिर दिखेगा अपने शाही स्वरूप में

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ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट :
राजू अतुलकर
जयपुर | राजस्थान की राजधानी जयपुर का गौरव ‘हवा महल’, जिसे ‘हवाओं का महल’ कहा जाता है, एक बार फिर अपने ऐतिहासिक स्वरूप में लौटता दिख रहा है। बीते कुछ दिनों से यहां हू-ब-हू पारंपरिक रंगों से रंगाई-पुताई का कार्य तेजी से चल रहा है, जिससे यह अनोखा महल एक बार फिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनने को तैयार है।
953 झरोखों वाला मधुकोश अब और भी निखरेगा
1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह द्वारा बनवाया गया यह पांच मंजिला महल अपनी 953 जालीदार झरोखों के लिए विश्वप्रसिद्ध है। इन झरोखों को इस तरह डिजाइन किया गया था कि रानियाँ व अन्य शाही महिलाएँ परदे की परंपरा के तहत बिना देखे बाहर का दृश्य देख सकें। साथ ही, इन जटिल जालियों के माध्यम से वेंचुरी प्रभाव पैदा होता था, जिससे महल में गर्मी के मौसम में भी ठंडी हवा बहती थी।
इन खूबसूरत झरोखों और गुलाबी रंग में रंगे पत्थरों की महिमा को बनाए रखने के लिए समय-समय पर मरम्मत और रंगाई-पुताई का कार्य किया जाता है। इस बार विशेष बात यह है कि पारंपरिक तकनीक और प्राकृतिक रंगों का उपयोग कर महल को उसी रूप में सजाया जा रहा है जैसा वह अपने स्वर्ण युग में हुआ करता था।
इतिहास को फिर से जीवित कर रहा है संरक्षण कार्य
राजस्थानी स्थापत्य कला की मिसाल माने जाने वाले हवा महल का डिजाइन लाल चंद उस्ताद द्वारा तैयार किया गया था। इसकी बाहरी संरचना एक मधुमक्खी के छत्ते जैसी दिखाई देती है। इस बार की रंगाई में वही पुराने, पारंपरिक रंगों और पद्धतियों को अपनाया गया है जो महल की ऐतिहासिक पहचान को बनाए रखते हैं।
2006 में भी इसका एक प्रमुख नवीनीकरण हुआ था, जिसकी लागत 45.68 लाख रुपये थी। उस समय यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने इसे गोद लेकर संरक्षण की दिशा में अहम योगदान दिया था। अब फिर से इस धरोहर को रंग-रूप दिया जा रहा है ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को भी भारतीय संस्कृति और स्थापत्य कला की भव्यता का एहसास करवा सके।
पर्यटकों के लिए बढ़ेगा आकर्षण

हवा महल जयपुर आने वाले पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण रहा है। हर साल लाखों देशी-विदेशी पर्यटक इसकी झरोखेदार दीवारों, संकरी सीढ़ियों और बालकनियों से जुड़ी ऐतिहासिकता को देखने आते हैं। रंगाई और मरम्मत के इस नए दौर के बाद महल और भी अधिक आकर्षक दिखाई देगा, जिससे पर्यटन को भी बल मिलेगा।
स्थानीय शिल्पकारों को मिल रहा है काम

इस कार्य में स्थानीय पारंपरिक शिल्पकारों की महत्वपूर्ण भागीदारी है, जिससे न सिर्फ धरोहर का संरक्षण हो रहा है बल्कि स्थानीय कारीगरों को रोजगार भी मिल रहा है। यह कदम सांस्कृतिक विरासत के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रहा है।
‘हवाओं का महल’ अब फिर से अपनी पुरानी शानो-शौकत की ओर लौट रहा है। गुलाबी नगरी का यह गुलाबी रत्न न सिर्फ स्थापत्य की मिसाल है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का गहना भी है। समय के साथ इसकी देखरेख और सुंदरता को बनाए रखने की जिम्मेदारी अब सिर्फ सरकार की नहीं, हम सभी की भी है।
यदि आप जयपुर जा रहे हैं, तो एक बार फिर से निखर रहे हवा महल की झलक जरूर लें – शायद आपको भी इतिहास की कोई झरोखी दिख जाए!

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Raju Atulkar
Author: Raju Atulkar

"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल

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