पत्रकांड पर अंतिम पुकार : ज्यूरी क्यों रही असफल?

SHARE:

✍️ पंकज जैन
दिल्ली | वर्तमान समय में जब सामाजिक ताना-बाना धर्म और विश्वास की डोर से जुड़ा है, तब किसी भी प्रकार की घटनाएं—विशेषकर जब वे पूज्य गुरुओं और धर्मगुरुओं के प्रति अपमान या षड्यंत्र की छाया लिए होती हैं—तो वे केवल एक समाज की चिंता नहीं रहतीं, बल्कि पूरे समाज के नैतिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर प्रश्नचिह्न बन जाती हैं।
“पत्रकांड” ऐसी ही एक घटना बनकर उभरी है, जिसने न केवल जैन समाज, बल्कि समस्त धार्मिक मानस को झकझोर दिया है। इस संवेदनशील विषय को लेकर जैन समाज के कुछ जागरूक, अनुभवी और धर्मनिष्ठ श्रेष्ठियों द्वारा एक सार्वजनिक अपील जारी की गई है, जिसमें उन्होंने रविन्द्र जैन (पत्रकार) सहित समाज के सभी सत्पुरुषों से आग्रह किया है कि वे अब इस गंभीर प्रकरण को निर्णायक मोड़ तक पहुँचाने में अग्रणी भूमिका निभाएं।
यह अपील केवल किसी व्यक्ति विशेष को संबोधित नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक आत्मा की पुकार है — जो शांति, सत्य और धर्म की रक्षा हेतु एकजुट होने की गुहार लगाती है। इसमें आक्रोश नहीं, समाधान की तलाश है। इसमें विरोध नहीं, परमार्थ है। और सबसे महत्वपूर्ण — इसमें धर्म और संत परंपरा की गरिमा की रक्षा की तड़प है।
जैन समाज के सम्मानित गणमान्यजनों – अजय दनगसिया (अजमेर), प्रकाश पाटनी (अजमेर), सुधीर जैन नमन वास्तु (जयपुर), सुशील पहाड़िया (जयपुर), पारस काशलीवाल (जयपुर) – ने पत्रकांड को लेकर एक भावुक अपील जारी की है, जो वर्तमान में पूरे समाज में चर्चा का विषय बना हुआ है।
उन्होंने रविन्द्र जैन को संबोधित करते हुए जो कहा वह हम आपको नीचे अक्षरशः प्रस्तुत कर रहे हैं—
सादर जय जिनेन्द्र,
आदरणीय प्रिय श्री रविन्द्र भाई,
बहुत बहुत साधुवाद!
हमने आज आपका यू ट्यूब पर वीडियो मेसेज, समाज और धर्म के प्रति आपकी सम्वेदना और अंतर्मन की वेदना को सुना। हमें आपके विचार सुनकर हमारा बहुत हौंसला अफजाई हुआ कि अभी जिनधर्म की पताका निरन्तर प्रवाहित 5वें कलिकाल के अंत तक रहेगी, जैसा केवलज्ञानी के ज्ञान में भी आया है।
आपके भावों में जिन धर्म और दिगम्बर गुरुओं के प्रति सम्मान बहुमान सुनकर प्रसन्नता से ह्रदय गद-गद हो गया, पर! अब तक अपनी इस प्रकरण में क्यों और क्या भूमिका रही इस पर भी अपना आत्मावलोकन करना आवश्यक है। अब बिना किसी पूर्वाग्रह, लोभ लालच, दबाव के निडरता से अपनी निष्पक्ष भूमिका निभानी पड़ेगी, फिर भले ही दोषी कोई भी क्यों ना हो हमें उसके चेहरे से धर्महित में नकाब हटाना ही पड़ेगा।
पर हमें सम्यकदर्शन के महत्वपूर्ण अंग उपगूहंन एवं स्थितिकरण अंग का पूर्ण रूपेण पालन करते हुए महाव्रतीयों के ऊपर किये गए उपसर्ग और अवर्णवाद का ईमानदारी से यथासंभव, यथाशक्ति, समाधान करना होगा।
अब हम अपने मूल विषय पर आपका ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं— जुलाई 2024 में भोपाल होटल ताज में पत्रकाण्ड के सम्बंध में एक ज्यूरी गठित हुई थी, उसमें सम्माननीय श्री आशोकजी भाईसाहब (RK मार्बल), आदरणीय सर प्रभात जी (मुम्बई), आदरणीय श्री पंकज भैया (पारस चैनल), आदरणीय श्री आशीषजी (पुणे), आदरणीय श्री वीरेशजी शेठ (दमोह), आदरणीय एडवोकेट श्री विपुल वर्धन (जबलपुर) — ज्यूरी हमारे पूज्य मुनिराजों के मार्गदर्शन में गठित की गई थी।
इस मीटिंग में आपकी और हमारी भी मौजूदगी थी। तब भी आपका पत्राचार प्रकरण के सम्बंध में यही विचार था कि पंचमकाल के इस निकृष्ट, भीभत्स कुकृत्य, निन्दनीय षड्यंत्र प्रकरण में जिनका भी हाथ हो उनकी भर्त्सना की जानी चाहिए और इस निन्दनीय प्रकरण का समाज के उपरोक्त गणमान्य श्रेष्ठियों द्वारा इसको निपटाकर पूज्य मुनिराजों के सम्मान, धर्म-ध्यान का ध्यान रखते हुए समाज को इस अनावश्यक बबाल से मुक्ति दिलाने का दायित्व ज्यूरी के कन्धों पर सौंपा गया था।
हमें नहीं मालूम इस काले कुकृत्य को ज्यूरी निपटाने में क्यों असफल हुई क्योंकि विवादित पक्षकार — आरोपी एवं आरोप लगाने वाले — दोनों पक्ष इस मीटिंग में उपस्थित हुए थे। दोनों पक्षों को अलग-अलग अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर दिया गया था। दोनों पक्षों ने अपने-अपने तथ्य ज्यूरी के समक्ष रखे और संबंधित तथ्यों के सम्बंध में उनकी पुष्टि के लिए प्रमाण भी रखे थे।
जिनका परीक्षण ज्यूरी ने निष्पक्ष अपने मापदण्ड के आधार पर किया — इसके बावजूद ज्यूरी को समस्या का समाधान करने में सफलता प्राप्त नहीं हो सकी। इसके पीछे क्या कारण रहे, ये ज्यूरी ही बता सकती है। पर ऐसा जरूर लगता है कि पत्रकाण्ड को गौण करके किसी दूसरे मामले को इसमें मिला दिया, फलस्वरूप मुख्य मुद्दा पीछे रह गया।
खैर कारण कुछ भी रहे हों — अब आदरणीय श्री रविंद्रजी, आपकी एवं सम्पूर्ण जैन समाज की दिगम्बर मुनिराजों गुरुओं के प्रति संवेदनशीलता और धार्मिक भावना को देखते हुए हम कह सकते हैं — भगवान के घर देर हैं, अंधेर नहीं।
आपसे हमारा विनम्र निवेदन है कि आप स्वयं इस घिनौने पत्रकाण्ड को खत्म करने के लिए अपनी पहल करें। दिगम्बर जैन समाज के आचार्य श्री के भक्त श्रेष्ठियों को पुनः एक जाजम पर इकठ्ठा करें। (इस निन्दनीय पत्रकाण्ड को करने वाले निश्चित ही अपने ही बीच के लोग होंगे)
हम सब मिलकर उनको अपना अपराध स्वीकार करने के लिए बाध्य करेंगें और समाज के स्तर पर परम् पूज्य आचार्य १०८ श्री समयसागरजी महाराज के श्री चरणों में अपराधियों को अपने कुकृत्य की निन्दा, भर्त्सना करवाकर, अपराधियों का भी प्रक्षालन / शुद्धीकरण करने का सफलतम प्रयास करेंगे।
हमें पूर्ण विश्वास है — हम ईमानदारी से अपने प्रयासों में पूर्ण सफल होंगे। सभी के धर्म-ध्यान में सहायक होकर, पुनः परम् पूज्य सन्त शिरोमणि आचार्य १०८ श्री विद्यासागरजी महाराज के द्वारा प्रकाशित मोक्षमार्ग की धर्मध्वजा को शीर्ष तक पहुंचाने में सफल होंगे।
आशा ही नहीं, हमें पूर्ण विश्वास है — आपके निस्वार्थ, सार्थक प्रयास मोक्षमार्ग और मोक्षमार्गियों के लिए, मोक्षमार्ग पर चलने में कंटक-रहित साधना के लिए मील का पत्थर साबित होंगे।
अब आपको पुनः प्रयत्न करके चातुर्मास से पूर्व ही इसे क्रियान्वित कराने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए।
फुंसी को कैंसर बनने से रोकना हम सभी साधर्मियों का कर्तव्य है, वरना इस प्रकरण की आग में लाक्षागृह की तरह हमारा सब कुछ भस्म हो जाएगा।
सादर —
अजय दनगसिया, अजमेर
प्रकाश पाटनी, अजमेर
सुधीर जैन “नमन वास्तु”, जयपुर
सुशील पहाड़िया, जयपुर
पारस काशलीवाल, जयपुर
🙏 विनम्रता सहित।”
इस पत्र के प्रत्येक शब्द से यह स्पष्ट झलकता है कि जैन समाज के भीतर एक प्रबुद्ध वर्ग अब यह महसूस कर रहा है कि मौन रहने से संकट नहीं टलते, बल्कि विकराल रूप ले लेते हैं। ‘फुंसी को समय रहते ठीक न किया जाए तो वह कैंसर बन जाती है’ — यह वाक्य केवल उपमा नहीं, एक चेतावनी है।
लेखकों का यह भी मानना है कि ज्यूरी की असफलता केवल निर्णय की नहीं, बल्कि मूल मुद्दे से भटकाव की त्रासदी भी है। जब धर्म को लेकर षड्यंत्र हों, जब पूज्य संतों को लक्ष्य बना लिया जाए, और जब समाज स्वयं निष्क्रिय रह जाए — तब धर्म की ध्वजा लहराने की बात केवल कल्पना बनकर रह जाती है।
लेकिन इस अपील में केवल प्रश्न नहीं हैं — समाधान का भी खाका है। प्रायश्चित के माध्यम से यह समाज उन दोषियों को भी एक अंतिम अवसर देना चाहता है — बशर्ते वे अपने अपराध स्वीकार कर लें। यही धर्म का मार्ग है — न्याय और करुणा का संतुलन है।
यह अपील दर्शाती है कि समाज अब सजग है, और धर्म के सम्मान में किसी भी प्रकार की चुप्पी अब क्षमा योग्य नहीं मानी जाएगी।
अब आवश्यकता इस बात की है कि चातुर्मास से पूर्व ही समाज के समस्त आचार्यभक्त, धर्मसेवी, और विचारशीलजन एकजुट होकर इस पत्रकांड कांड का समाधान निकालें। यह केवल एक विवाद का अंत नहीं होगा, बल्कि धर्ममार्ग पर चल रहे अनगिनत साधकों के लिए एक रक्षण कवच सिद्ध होगा।
यदि इस अपील को समाज अपने अंतरात्मा की पुकार मानकर स्वीकार करता है, तो यह प्रकरण केवल एक “समस्या” न रहकर “सिद्धांत” बन जाएगा — धर्म की मर्यादा की रक्षा का सिद्धांत।

⚠️ अस्वीकृति / डिस्क्लेमर :
यह लेख सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक संदेश का मूल स्वरूप है, जिसे विभिन्न जैन समाज के सदस्यों द्वारा साझा किया गया है। इसमें व्यक्त विचार संबंधित व्यक्तियों के निजी मत हैं। “तेजस रिपोर्टर” इन विचारों से पूर्णतः सहमत हो, ऐसा आवश्यक नहीं है। तथ्यों की पुष्टि संबंधित पक्षों से स्वतंत्र रूप से की जानी चाहिए।

ये ख़बर आपने पढ़ी देश के तेजी से बढ़ते लोकप्रिय हिंदी आज तेजी से बदलते परिवेश में जहां हर क्षेत्र का डिजिटलीकरण हो रहा है, ऐसे में
दैनिक तेजस रिपोर्टर
www.tejasreporter.com सटीक समाचार और तथ्यात्मक रिपोर्ट्स लेकर आधुनिक तकनीक से लैस अपने डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रस्तुत है। अपने निडर, निष्पक्ष, सत्य और सटीक लेखनी के साथ…24X7
मैं पंकज जैन ✍️और मेरे सहयोगी अब आप तक देश विदेश की महत्वपूर्ण खबरों को पहुंचाने के लिए कटिबद्ध हैं।
ऐसी ही ताज़ा और अहम ख़बरों के लिए जुड़े रहें!
सभी अपडेट्स व नोटिफिकेशन प्राप्ति के लिए नीचे दिए गए बेल आइकन पर क्लिक कर अभी सब्सक्राइब करें।
Tejas Reporter
Author: Tejas Reporter

Join us on:

सबसे ज्यादा पड़ गई
Marketing Hack4u
error: Content is protected !!