गर्मी की तपिश में भी नहीं थमी आस्था की लौ: गोरखनाथ मंदिर में योगी दयानाथ जी की पंचधुनी तप साधना

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रिपोर्टर – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | भीषण गर्मी और चिलचिलाती धूप के बावजूद शिवपुरी के समीप करबला क्षेत्र, नोन कोलू पुलिया के पास स्थित गोरखनाथ मंदिर में आस्था की अलख जलती रही। हिमाचल प्रदेश से पधारे नाथ संप्रदाय के परम योगी श्री दयानाथ जी महाराज ने नोन कोलू पुलिया के पास स्थित इस मंदिर परिसर में पंचधुनी तप साधना कर समस्त क्षेत्र को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।
झांसी रोड पर स्थित यह गोरखनाथ मंदिर अब केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि नाथ परंपरा के संयम, सेवा और साधना का जीवंत केंद्र बन चुका है। योगी दयानाथ जी द्वारा यहां पंचधुनी तप किया जाना साधना के कठिनतम रूपों में से एक को दर्शाता है, जिसमें साधक चारों ओर जलती अग्नि की धधकती धूनियों के मध्य बैठकर मानसिक और आत्मिक शुद्धि का प्रयास करता है।

गौरतलब है कि जब तापमान 40 डिग्री के पार हो और लू जैसे हालात हों, तब इस प्रकार की साधना कर पाना केवल कठोर तप, अनुशासन और आत्मबल का ही नहीं, अपार श्रद्धा और समर्पण का भी प्रमाण है। योगी दयानाथ जी ने इस तप के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया कि आस्था और साधना की शक्ति किसी भी भौतिक चुनौती से कहीं ऊपर होती है।
पंचधुनी तप के दौरान मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। धधकती अग्नि और मंत्रोच्चार के बीच जब योगी जी तप में लीन थे, तब पूरा वातावरण दिव्यता और आध्यात्मिकता से परिपूर्ण हो गया। कई श्रद्धालु भाव-विभोर होकर इस दुर्लभ साधना के दर्शन करते रहे।
मंदिर की स्थापना से लेकर अब तक योगी दयानाथ जी द्वारा क्षेत्र में अध्यात्म और सेवा का जो संदेश दिया जा रहा है, उसने लोगों को न केवल धर्म से जोड़ा है, बल्कि संयमित और सात्विक जीवन की प्रेरणा भी दी है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस प्रकार की साधनाएं केवल संतों की महान परंपरा को जीवंत नहीं करतीं, बल्कि युवा पीढ़ी को भी अध्यात्म की ओर आकर्षित करती हैं। गोरखनाथ मंदिर अब नाथ परंपरा का एक प्रखर केंद्र बनता जा रहा है, जहां नियमित रूप से योग, ध्यान और साधना से जुड़े कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
शिवपुरी जैसे शहर में, जहां आधुनिकता की दौड़ भी तेज़ हो रही है, वहां इस प्रकार की साधना लोगों को रुककर आत्मनिरीक्षण करने और भीतर झांकने की प्रेरणा देती है।
योगी दयानाथ जी की पंचधुनी तप साधना ने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि अगर साधना सच्चे भाव से की जाए, तो वह केवल साधक ही नहीं, पूरे समाज को आध्यात्मिक प्रकाश से आलोकित कर सकती है।
यह तप न केवल आस्था का प्रतीक था, बल्कि संयम, तपस्या और समर्पण की परंपरा का जीवंत उदाहरण भी बना। गोरखनाथ मंदिर अब केवल एक स्थान नहीं, बल्कि साधना और सेवा की एक प्रेरणास्रोत भूमि बन चुकी है।

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