रिपोर्ट – अतुल कुमार जैन
शिवपुरी | पिछोर थाना पुलिस ने शनिवार को जंगल में छिपी एक अवैध हथियार फैक्ट्री का पर्दाफाश कर इलाके में खलबली मचा दी है। यह फैक्ट्री सिर्फ हथियार निर्माण का अड्डा नहीं थी, बल्कि इसके तार अब राजनीति और संगठित अपराध की मिलीभगत की ओर भी इशारा कर रहे हैं। आरोपी से पूछताछ के बाद पुलिस को न केवल हथियारों के नेटवर्क की जानकारी मिली, बल्कि यह आशंका भी गहराई है कि इस अवैध कारोबार को किसी स्तर पर राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त हो सकता है।
पुलिस की कार्रवाई: जंगल से निकली तबाही की कहानी
थाना प्रभारी निरीक्षक जितेंद्र सिंह मावई के नेतृत्व में पुलिस ने कुण्डलपुर-द्वारका रोड स्थित जंगल में दबिश देकर रामकेश लोधी नामक युवक को हथियारों की खेप के साथ गिरफ्तार किया। उसके पास से दो अधिया, दो कट्टे और एक जिंदा कारतूस जब्त किया गया। पूछताछ में उसने आका उर्फ आकाश लौहार का नाम लिया, जो उत्तर प्रदेश के मऊरानीपुर का निवासी है और इस फैक्ट्री का असली संचालक बताया जा रहा है।
राजनीतिक संरक्षण का एंगल आया सामने
पुलिस सूत्रों की मानें तो आरोपी रामकेश और आका उर्फ आकाश कुछ स्थानीय राजनीतिक नेताओं से जुड़े रहे हैं, खासकर उन नेताओं से जो ग्रामीण इलाकों में अपना प्रभाव रखते हैं। कुछ वर्षों से पिछोर और आसपास के क्षेत्रों में पंचायत और जिला स्तर की राजनीति में जो व्यक्ति तेजी से उभरे हैं, उनके कार्यक्रमों में इन आरोपियों की उपस्थिति की चर्चा स्थानीय स्तर पर आम रही है।
इसके अलावा, यह भी संकेत मिल रहे हैं कि गिरोह द्वारा बनाए गए हथियारों का उपयोग स्थानीय चुनावों में दबाव बनाने, भूमि विवादों को निपटाने, और आपसी राजनीतिक रंजिशों में हिंसा फैलाने के लिए किया गया। हालांकि पुलिस ने इस पर आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन इस पहलू की जांच के लिए एक अलग इंटेलिजेंस विंग को सक्रिय किया गया है।
क्या है राजनीतिक तारों का मकसद?
विशेषज्ञों का मानना है कि हथियार तस्करी के ऐसे नेटवर्क बिना ऊपरी संरक्षण के लंबे समय तक नहीं चल सकते। जंगल में इतने लंबे समय तक फैक्ट्री संचालित रहना, निर्माण सामग्री की आपूर्ति, और तैयार हथियारों की सुरक्षित सप्लाई – ये सब तब तक संभव नहीं जब तक किसी प्रभावशाली व्यक्ति या समूह की शह न हो।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, “हमें इस बात के प्रमाण जुटाने हैं कि क्या इस गिरोह को वाकई किसी जनप्रतिनिधि या स्थानीय प्रभावशाली नेता का संरक्षण मिला है। अगर ऐसा होता है, तो मामला और गंभीर हो जाता है।”
जनता की नजर में शक की सुई किस ओर?
स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ प्रभावशाली नेताओं के संरक्षण में अवैध गतिविधियां लंबे समय से चल रही हैं। कई बार जंगल में संदिग्ध आवाजाही की सूचना प्रशासन को दी गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इससे आम जनता में यह विश्वास गहराता जा रहा है कि इन अवैध गतिविधियों के पीछे कोई न कोई बड़ा चेहरा जरूर है, जो सब कुछ जानते हुए भी आंखें मूंदे हुए है।
पुलिस की चुनौती: सिर्फ तस्कर नहीं, संरक्षकों तक भी पहुंचना होगा
अब पुलिस के सामने चुनौती यह नहीं कि सिर्फ हथियार बनाने वालों को पकड़ा जाए, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया जाए कि इस अपराध के संरक्षकों पर भी कार्रवाई हो। यदि राजनीतिक संरक्षण सिद्ध होता है, तो यह न केवल कानून व्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि लोकतंत्र के मूल ढांचे के लिए भी चिंता का विषय होगा ।
पिछोर पुलिस की यह कार्रवाई एक बड़ी सफलता जरूर है, लेकिन यह सिर्फ शुरुआत भर है। जंगल में हथियार बनाना और उनका खुलेआम व्यापार करना यह बताता है कि अपराधियों को कहीं न कहीं से सुरक्षा की भावना थी। अब जरूरी है कि पुलिस सिर्फ सामने दिख रहे चेहरों पर नहीं, बल्कि परदे के पीछे बैठे चेहरों पर भी हाथ डाले। यदि इस अवैध कारोबार में राजनीतिक संरक्षण की पुष्टि होती है, तो यह मामला पूरे राज्य की राजनीति और प्रशासन पर सवाल खड़ा करेगा।
पुलिस और प्रशासन को चाहिए कि वे इस नेटवर्क की तह तक जाएं और जनता के सामने सच्चाई को पूरी पारदर्शिता से लाएं। क्योंकि जब तक इस तरह के अपराधों को समर्थन देने वाले शक्तिशाली लोगों को जवाबदेह नहीं ठहराया जाएगा, तब तक जंगल में हथियार बनते रहेंगे और आम आदमी की सुरक्षा खतरे में बनी रहेगी।
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Author: Raju Atulkar
"पत्रकारिता सिर्फ पेशा नहीं, जिम्मेदारी भी है…" साल 2015 से कलम की स्याही से सच को उजागर करने की यात्रा जारी है। समसामयिक मुद्दों की बारीकियों को शब्दों में ढालते हुए समाज का आईना बनने की कोशिश। — राजू अतुलकर, तेजस रिपोर्टर डिजिटल
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