स्वर्ग समान सुमति धाम और महादानी गोधा दंपत्ति

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✍️ राजेश जैन “दद्दू”
इंदौर नगरी के एक कोने में बसी गांधीनगर कॉलोनी, जहाँ कभी सिर्फ ईंट और पत्थर थे, आज वहाँ धर्म, श्रद्धा और सेवा की दिव्य गंगा बह रही है। इस परिवर्तन के पीछे हैं – मनीष और सपना गोधा, एक ऐसा दंपत्ति जो धनिक तो हैं ही, पर उससे कहीं अधिक हैं – उदार, विनम्र और धर्मनिष्ठ।
गोधा दंपत्ति वे बिरले सौभाग्यशाली हैं, जिनके पास न केवल धन है, बल्कि उस धन का सदुपयोग करने की आत्मिक प्रेरणा भी है। धन को केवल ऐश्वर्य तक सीमित न रखते हुए उन्होंने उसे धर्म, समाज और संस्कृति के उत्थान में लगाया – यह उनका जीवन का मिशन बन गया।

सुमति धाम – एक स्वप्न जो साकार हुआ

गांधीनगर स्थित सुमति धाम, जिसे गोधा स्टेट के रूप में भी जाना जाता है, आज एक आध्यात्मिक तीर्थ बन चुका है। इसका निर्माण गोधा दंपत्ति ने अपने स्व-अर्जित धन से किया, न कोई दिखावा, न कोई प्रचार – बस आत्मिक संतोष और धार्मिक कर्तव्य की भावना से।

यह वही स्थान है जहाँ उन्होंने भगवान सुमति नाथ की अत्यंत मनोहारी प्रतिमा की प्रतिष्ठा पिछले वर्ष पंचकल्याणक महोत्सव के माध्यम से करवाई थी। उस आयोजन की भव्यता और धार्मिक गरिमा ने न केवल इंदौर, बल्कि पूरे देश के जैन समाज को आकर्षित किया था।

पट्टाचार्य समारोह – स्वर्ग उतार लाने का प्रयास

एक वर्ष के भीतर ही, गोधा दंपत्ति ने फिर से धर्म की एक नई ऊँचाई छूने का निश्चय किया। इस बार अवसर था – आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के पट्टाचार्य पदारोहण समारोह का।
सुमति धाम की भूमि को उन्होंने ऐसे सुसज्जित किया, मानो स्वर्ग की एक झलक धरती पर उतर आई हो। देशभर से आए सैकड़ों मुनिराजों के निवास, आहार और उपासकों के लिए भोजन, जलपान, और मनोरंजन – हर व्यवस्था इतनी व्यवस्थित और भव्य थी कि लाखों जनमानस की सेवा सहज रूप से संभव हो गई।

धर्मनिष्ठा की मिसाल

यह आयोजन न केवल एक समारोह था, बल्कि एक धर्मयज्ञ था – जिसमें गोधा दंपत्ति की आहुति, उनके परिश्रम और समर्पण के रूप में प्रकट हुई। यह कार्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित होने योग्य है।
भविष्य में जब कोई भामाशाह की मिसाल देना चाहेगा, तो मनीष और सपना गोधा का नाम श्रद्धा और सम्मान से लिया जाएगा – महादानी, निर्भिमानी और युगद्रष्टा के रूप में।

आशीर्वाद और शुभकामनाएँ

आज जब सुमति नाथ भगवान की कृपा और आचार्य विशुद्ध सागर जी जैसे संतों का आशीर्वाद उन पर बरस रहा है, तो पूरा समाज एक स्वर में यही भावना करता है –
“गोधा परिवार सदा स्वस्थ रहे, व्यस्त रहे, धर्म में रमा रहे, खुशहाल और समृद्ध बना रहे।”
और इस प्रेरक गाथा के अंत में यही कहा जा सकता है :
धन्य हैं वे जो धन कमाते हैं,
लेकिन उनसे भी धन्य हैं वे,
जो उस धन को धर्म में लगाते हैं।
डॉ. जैनेंद्र जैन एवं राजेश जैन ‘दद्दू’

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