नरभक्षी बेटा : शराब के लिए मां को मार डाला, अंग तले और नमक-मिर्च डालकर खा गया : कोर्ट बोला – इंसान नहीं, हैवान है!

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✍️ रिपोर्ट : डिजिटल डेस्क
मुंबई | महाराष्ट्र की न्यायिक भूमि पर उस दिन इंसानियत ने सिर झुका दिया जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐसे बेटे की फांसी की सजा को बरकरार रखा, जिसने अपनी 63 वर्षीय मां की हत्या कर, उसके हृदय और लीवर जैसे अंगों को तवे पर तलकर खा लिया। यह घटना जितनी दर्दनाक है, उससे कहीं अधिक डरावनी और असामान्य।

यह फैसला जस्टिस रेवती मोहिते ढेरे और जस्टिस पी. के. चव्हाण की बेंच ने सुनाया, जिसमें साफ शब्दों में कहा गया कि “यह प्रकरण ‘Rarest of Rare’ श्रेणी में आता है। यह मानवता की सारी सीमाएं पार कर चुका एक नरभक्षण (Cannibalism) का उदाहरण है, जिसमें दोषी की मानसिकता पूरी तरह बर्बर और अमानवीय है।”

  • नरभक्षी बेटे को बॉम्बे हाईकोर्ट का करारा झटका – फांसी की सजा रहेगी कायम!
  • मां से शराब के लिए मांगे पैसे, न देने पर ली जान – फिर इंसानियत को किया शर्मसार!
  • कोर्ट की तीखी टिप्पणी – आरोपी की प्रवृत्ति ‘कैनिबल’ (Cannibal) जैसी, सुधार की कोई गुंजाइश नहीं!
  • येरवडा जेल में बंद हैवान – Supreme Court में 30 दिन में अपील की अनुमति, लेकिन उम्मीद नहीं!
  • ‘मां का हत्यारा, उसका रसोइया और नरभक्षी भी!’ – समाज की रूह कांप उठी!

शराब के लिए मां की जान ली और फिर बनाया ‘भोजन’

घटना की जड़ें 28 अगस्त 2017 के दिन कोल्हापुर में गड़ी हैं, जब आरोपी सुनील कुचकोरावी ने सिर्फ इसलिए अपनी मां यलम्मा की निर्ममता से हत्या कर दी क्योंकि उसने शराब के लिए पैसे देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद जो हुआ, उसने समाज की आत्मा को झकझोर कर रख दिया।

वह शव के कई हिस्सों को काटकर, अपने ही घर में तवे पर तलकर खाने लगा। यह दृश्य केवल किसी हॉरर फिल्म का हिस्सा लगता है, लेकिन दुर्भाग्य से यह एक भयावह हकीकत है।

सेशन कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक – सजा बरकरार

2021 में कोल्हापुर सेशन कोर्ट ने आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी। अदालत ने कहा था – “यह कृत्य न केवल क्रूर है, बल्कि ऐसा है जिसमें शब्द भी मां की पीड़ा को बयान करने में असफल हैं।”

अब, बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखते हुए कहा – “यह आरोपी मानव समाज के लिए खतरा है। उसमें सुधार की कोई संभावना नहीं है।”

सुप्रीम कोर्ट में अपील का अवसर, पर उम्मीद नहीं

फैसले के दौरान आरोपी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश किया गया, जहां उसे बताया गया कि वह 30 दिनों के भीतर Supreme Court में अपील कर सकता है। परंतु, कानून विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में उम्मीद की कोई किरण शेष नहीं रहती।

वर्तमान में वह पुणे की येरवडा सेंट्रल जेल में बंद है और समाज उससे केवल एक दूरी नहीं, बल्कि अभिशाप की भावना रखता है।

फॉरेंसिक सबूत और चश्मदीद गवाहियां :

इस मामले की जांच में अभियोजन पक्ष ने ठोस वैज्ञानिक साक्ष्यों का सहारा लिया। डीएनए परीक्षण और अन्य फॉरेंसिक जांचों से यह प्रमाणित हुआ कि आरोपी ने अपनी मां के शरीर के अंगों को काटा और पकाने का प्रयास किया था। इसके अलावा, कुल 12 व्यक्तियों ने अदालत में गवाही देकर अभियोजन के पक्ष को और भी मजबूत किया।

मनोवैज्ञानिक जांच और निष्कर्ष :

कोर्ट ने आरोपी की मानसिक स्थिति और सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए उसका मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करवाया। मूल्यांकन के दौरान विशेषज्ञों ने यह पाया कि उसमें असामान्य और खतरनाक प्रवृत्तियाँ मौजूद हैं। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी में किसी प्रकार के सुधार की संभावना नहीं दिखती, और उसकी प्रवृत्ति अत्यंत विकृत एवं अमानवीय है।

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