103 वर्षीय नन्नू बाई जैन ने समाधि मरण के साथ किया जीवन पूर्ण

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रिपोर्ट-अतुल कुमार जैन
बामौरकलां, मध्यप्रदेश : तप, त्याग और आध्यात्मिक साधना की मिसाल बनीं 103 वर्षीय नन्नू बाई जैन ने आज प्रातः बामौरकलां के पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में शांतिधारा के दौरान समाधि मरण को प्राप्त किया। वे पिछले 40 वर्षों से आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर थीं और वर्तमान में 7वीं प्रतिमा धारी थीं।

आध्यात्मिकता से ओतप्रोत जीवन

नन्नू बाई का दिनचर्या अत्यंत अनुशासित और धार्मिक प्रवृत्ति का था। वे रोज सुबह 3:30 बजे जागतीं, दैनिक क्रियाओं के बाद पूजन-अर्चन में लीन हो जातीं। सुबह 6 बजे वे मंदिर जातीं और प्रातः 9 बजे तक वहीं रहतीं, जबकि शाम को 5 से 6 बजे तक पुनः मंदिर में समय बितातीं। उनका स्वाध्याय और आध्यात्मिक अध्ययन अविरत चलता रहता था। उनकी सबसे विशेष बात यह थी कि वे रोज 108 माला नमोकार मंत्र का जाप करती थीं।

आज भी यही क्रम चल रहा था। वे प्रतिदिन की तरह सुबह 6 बजे मंदिर पहुंचीं, जहां भगवान पार्श्वनाथ के अभिषेक और शांतिधारा का कार्यक्रम चल रहा था। उसी दौरान, मुनिश्री 108 निरापद सागर जी महाराज के प्रवचन के बाद, उन्होंने समाधि मरण को प्राप्त किया।

कठिनाइयों से जूझते हुए आत्मबल से जीता जीवन

नन्नू बाई का जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे कहती थीं,
“मैंने अपनी 103 साल की यात्रा में दो महामारियों—हैजा और COVID-19—का सामना किया, लेकिन कभी भी किसी दवा का सहारा नहीं लिया। मेरा आत्मबल और विश्वास ही मेरी सबसे बड़ी ताकत थी।”
उनकी यह दृढ़ता और सकारात्मक सोच उन्हें समाज में एक प्रेरणास्रोत बना गई।

त्याग और सेवा की अनूठी मिसाल

नन्नू बाई सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक सरोकारों में भी आगे थीं। वे हमेशा गरीबों की सहायता के लिए तत्पर रहतीं और आत्मनिर्भरता का जीता-जागता उदाहरण थीं। उन्होंने अपने दम पर व्यवसाय खड़ा किया और समाज को दिखाया कि नारी सशक्तिकरण सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि एक जीने की कला है।
उनकी प्रेरणा से उनका परिवार भी आगे बढ़ा। उनके बेटे प्रकाश चंद जैन दो बार ग्राम प्रधान रहे, वहीं उनकी पीढ़ियों में कई डॉक्टर और इंजीनियर बने। उनके पोते डॉ. सी.के. जैन, जो पिछले 30 वर्षों से बामौरकलां में रह रहे थे, उनके साथ ही निवास कर रहे थे।

अंतिम यात्रा की तैयारियाँ

आज दोपहर 3 बजे के बाद नन्नू बाई की अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान से मुक्तिधाम के लिए निकाली जाएगी। समूचे गांव और जैन समाज के श्रद्धालु उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ेंगे।

एक प्रेरणादायक विरासत

नन्नू बाई का जीवन संदेश है कि त्याग, तप और समाज के प्रति सेवा का भाव हमें अमर कर देता है। उन्होंने अपने जीवन में जो सिद्धांत अपनाए, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शक बन गए हैं। उनकी स्मृति और उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहेगा।

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