रिपोर्ट-अतुल कुमार जैन
बामौर कलां | महान संत, विचारक और मूकमाटी महाकाव्य के रचनाकार आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की दिव्य स्मृतियों को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए उनके प्रथम समाधि दिवस पर बामौर कलां में मंगल चरण की प्रतिष्ठा की गई। सात धातुओं से निर्मित 24 इंच के ये पावन चरण उन 108 नगरों के सौभाग्यशाली श्रद्धालुओं को प्राप्त होंगे, जिन्होंने अपने जीवन को उनके सिद्धांतों के अनुरूप समर्पित किया है।
इस ऐतिहासिक अवसर पर पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, बामौर कलां में ब्र. सुषमा दीदी एवं समस्त सिंघई परिवार को मंगल चरण स्थापना का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ, जबकि चरण चिन्ह अनावरण का सुअवसर कुंदनलाल मोदी परिवार को प्राप्त हुआ।
मुनि श्री 108 निरापद सागर जी महाराज का दिव्य सानिध्य
इस भव्य आयोजन में मुनि श्री 108 निरापद सागर जी महाराज का शुभ सानिध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने गुरु के पावन चरणों की अर्चना की एवं श्रद्धालुओं को उनके अमूल्य शिक्षाओं से अवगत कराया। पूरे नगर में उत्सव जैसा माहौल था—घरों के द्वार रंगोली से सजे थे, भक्ति पूर्ण आरतियाँ गूंज रही थीं और समाज ने श्रद्धापूर्वक मंगल चरणों की अगवानी की।
आचार्य श्री विद्यासागर जी: तप, ज्ञान और साहित्य की प्रेरणास्रोत विभूति
10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में जन्मे आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जीवन प्रेरणादायक तपस्या, ज्ञान और आत्मशुद्धि का उदाहरण रहा। उन्हें आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से दीक्षा प्राप्त हुई और वे अपने अपूर्व आध्यात्मिक तेज एवं ज्ञान के बल पर आचार्य पद तक पहुंचे।
वे केवल एक संत ही नहीं बल्कि एक महान साहित्यकार भी थे। उनकी कृतियाँ संस्कृत, हिंदी एवं अंग्रेजी में उपलब्ध हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना “मूकमाटी महाकाव्य” भारतीय साहित्य में अद्वितीय स्थान रखती है। इतना ही नहीं, इसे कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
चिरशांति की ओर अंतिम कदम
18 फरवरी 2024, रात्रि 2:30 बजे, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) स्थित चन्द्रगिरि पर्वत पर उन्होंने देह का त्याग कर महासमाधि धारण की और पंचतत्व में विलीन हो गए। उनके निर्वाण से संपूर्ण जैन समाज एवं आध्यात्मिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई, परंतु उनके विचार और सिद्धांत युगों तक प्रेरणा देते रहेंगे।
राष्ट्र की श्रद्धांजलि : 100 रुपये का विशेष स्मारक सिक्का और रजत पत्र
आचार्य श्री की अविस्मरणीय शिक्षाओं और योगदान को सम्मान देने हेतु भारत सरकार ने उनके सम्मान में 100 रुपये मूल्य का विशेष स्मारक सिक्का जारी किया है। साथ ही, मूकमाटी महाकाव्य को रजत पत्र पर अंकित किया गया है, जिससे यह भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहे। इसके अतिरिक्त, जयशतक परिषद की विशेष उपलब्धियों को भी रजत पत्र पर स्थान दिया गया है।
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Author: Tejas Reporter
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