@राकेश कुमार जैन
नए साहब के तेवर देख अधिकारी हैरान—ट्रेलर ही इतना धांसू है तो पूरी पिक्चर कैसी होगी? बड़े साहब ने आते ही सबको आईना दिखा दिया।
साहब को काटो तो खून नहीं !
बड़े साहब ने फोन पर पूछा—”आपका विभाग कौन सा?”
मातहत अधिकारी ने तुरंत जवाब दिया—”जनहितैषी!”
साहब बोले—”यह मौखिक जनहितैषी है या असल में जनता की सुनवाई भी होगी?“
इतना सुनते ही अधिकारी को काटो तो खून नहीं जैसे अचानक बिजली गिर पड़ी हो। अधिकारी समझ गए —”एयर-कंडीशंड दफ्तरों में बैठकर फाइलों पर दस्तखत करने के दिन लद गए बड़े साहब ने फोन पर ही फरमान सुना दिया फिजिकली तुरंत उस गांव पहुंचिए जहां लोग तकलीफ में हैं!”
झूठ बोला, फंस गए!
अधिकारी के मातहत को लगा कि गोलमोल जवाब देकर पिंड छुड़ा लेंगे, लेकिन साहब की नजरें पारखी निकलीं। झूठ पकड़ा गया और उसकी कीमत एक दिन की तनख्वाह से चुकानी पड़ी। अब बाकी अधिकारियों की भी सिट्टी-पिट्टी गुम!
खुसर-पुसर शुरू—”अब किसकी बारी?“
साहब के कड़क अंदाज से दफ्तरों में खलबली मची है। अधिकारी आपस में फुसफुसा रहे हैं—”अब अगला कौन?“
पहली बार लगा कि अब सिर्फ काम से ही पहचान बनेगी, बहानेबाजी नहीं चलेगी।
“तनख्वाह जनता की सेवा के लिए मिलती है, बहानेबाजी के लिए नहीं!“
साहब ने साफ शब्दों में कह दिया—”जो जनता से मुंह मोड़ेगा, वो नोटिस के लिए तैयार रहे!”
पहली ही बैठक में साहब के फोन से लगातार गूंजती फटकार ने बता दिया कि “काम नहीं किया, तो कुर्सी भी नहीं बचेगी!”
अब देखना यह है कि यह नया दौर सरकारी महकमे को कितना बदल पाता है, लेकिन इतना तय है—
“पिक्चर अभी बाकी है!“
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Author: Tejas Reporter
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