जनता के कलेक्टर – अब बच्चों के दिलों को जीतकर बढ़ाया हौसला, एक वादा जो दिलों में बस गया

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राकेश कुमार जैन
रायसेन | सोमवार, 3 फरवरी 2025 की सुबह
शासकीय बालक उत्कृष्ट अनुसूचित जाति छात्रावास के बच्चे अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे। कुछ बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, तो कुछ खेल के मैदान में दौड़ रहे थे। तभी छात्रावास के गेट पर एक गाड़ी आकर रुकी। दरवाजा खुला, और एक सादा-सुगठित व्यक्तित्व वाले व्यक्ति नीचे उतरे। उनकी आँखों में आत्मविश्वास और चेहरे पर स्नेह झलक रहा था।

यह कोई और नहीं, बल्कि रायसेन के नवागत कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा थे। उनकी उपस्थिति ने छात्रावास में हलचल मचा दी। बच्चे कुछ पल के लिए चौंक गए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि जिले का सबसे बड़ा अधिकारी यूँ अचानक उनके बीच आ जाएगा। लेकिन जल्द ही उनका संकोच दूर हो गया, जब उन्होंने देखा कि कलेक्टर साहब मुस्कुराते हुए उनकी ओर बढ़ रहे हैं।

कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा ने सबसे पहले छात्रावास का निरीक्षण किया। हर कमरे, हर कोने में जाकर उन्होंने वहाँ की व्यवस्थाएँ देखीं। फिर, भोजन कक्ष में पहुंचे और बच्चों के लिए बनाए गए भोजन की गुणवत्ता को परखा। मगर सिर्फ निरीक्षण ही उनका उद्देश्य नहीं था। वे बच्चों के साथ एक दोस्त की तरह घुल-मिल गए।
वे सीधे बच्चों के पास जाकर बैठ गए और बोले, “बच्चों, माता-पिता ने तुम पर जो भरोसा किया है, उसे मेहनत और लगन से पूरा करो। अपनी शिक्षा को हथियार बनाओ और अपने सपनों की उड़ान भरो।”
बच्चे उन्हें टकटकी लगाकर देख रहे थे। इतने बड़े अधिकारी से वे पहली बार इतने करीब से बात कर रहे थे। कलेक्टर साहब ने खुद भोजन की थाली ली और बच्चों के साथ ही टेबल पर बैठकर खाने लगे। यह दृश्य देखकर बच्चों का मन खुशी से भर गया। यह पहली बार था जब कोई कलेक्टर उनके साथ बैठकर भोजन कर रहा था, उनसे उनके भविष्य के सपनों के बारे में पूछ रहा था।

सपनों को पंख देने की सीख

बातचीत के दौरान उन्होंने बच्चों से उनके सपनों के बारे में पूछा। किसी ने कहा वह डॉक्टर बनना चाहता है, तो किसी ने कहा वह इंजीनियर बनेगा। एक बच्चे ने झिझकते हुए कहा, “सर, मैं भी आपकी तरह कलेक्टर बनना चाहता हूँ, लेकिन यह बहुत मुश्किल लगता है।”

कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा मुस्कुराए और बोले, “कोई भी सपना मुश्किल नहीं होता, बस उसे पूरा करने के लिए सच्ची मेहनत और लगन चाहिए। मैं भी कभी एक साधारण छात्र था, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। अगर मैंने कर दिखाया, तो तुम भी कर सकते हो!”
उनकी यह बात बच्चों के दिलों में गहरी उतर गई। उनके शब्दों ने उनमें एक नई ऊर्जा और आत्मविश्वास भर दिया। बच्चे खुद को प्रेरित महसूस कर रहे थे।

वादा जो दिलों में बस गया

बच्चों की आँखों में चमक देखकर कलेक्टर साहब ने कहा, “मुझसे वादा करो कि तुम अपने माता-पिता का नाम रोशन करोगे, खूब मेहनत करोगे और अपने सपनों को साकार करोगे!”
सभी बच्चों ने एक सुर में कहा, “हम वादा करते हैं, सर!
वह दिन बच्चों के जीवन में एक नया मोड़ लेकर आया। कलेक्टर अरुण विश्वकर्मा उनके लिए सिर्फ एक अधिकारी नहीं रहे, बल्कि एक प्रेरणा, एक मार्गदर्शक बन गए। उनके शब्दों की गूँज बच्चों के दिलों में हमेशा के लिए बस गई।

रायसेन के इस छात्रावास में उस दिन सिर्फ एक कलेक्टर नहीं आया था, बल्कि एक महानायक आया था—जो बच्चों के सपनों को हकीकत में बदलने का संदेश देकर गया था।

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