अतुल कुमार जैन
मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले की विशालतम तहसील खनियाधाना से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ऐतिहासिक, कलात्मक एवं भव्य रमणीय तीर्थोदय अतिशयकारी गोलाकोट प्राचीन जैन तीर्थ। यह मंदिर न केवल अपनी अद्भुत वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके अतिशय और प्राचीनता इसे विशेष बनाते हैं।
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गोलाकोट जैन मंदिर में हर कदम पर मिलती है आध्यात्मिक शांति
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भगवान आदिनाथ की अतिशयकारी प्रतिमा और चमत्कारों का केंद्र
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3000 वर्ष से भी अधिक पुराना गोलाकोट मंदिर है, दिव्य अनुभूतियों का स्थान
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मंदिर, जो दिखाता है चमत्कार और विज्ञान का संगम
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गोलाकोट मंदिर: प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत मिश्रण
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खनियाधाना का धार्मिक रत्न: तीर्थोदय अतिशयकारी जैन मंदिर
3000 वर्षों की प्राचीनता का प्रमाण
गोलाकोट जैन मंदिर की प्राचीनता का प्रमुख आधार यह है कि यहां चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। जैन धर्म के अनुसार, भगवान महावीर ने लगभग 2551 वर्ष पूर्व मोक्ष प्राप्त किया था। इस तथ्य से यह अनुमान लगाया जाता है कि मंदिर की स्थापना 3000 वर्षों से भी अधिक पुरानी है।
प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक महत्व
यह मंदिर जंगल के मध्य, 150 फीट ऊंचे पर्वत की चोटी पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं: पहला 350 सीढ़ियों वाला मार्ग और दूसरा पहाड़ को घेरे हुए एक सुगम आरसीसी मार्ग। दोनों ही मार्ग भक्तों को भक्ति और प्रकृति की अद्वितीय अनुभूति कराते हैं।
चमत्कारों से भरपूर मूलनायक प्रतिमा
मंदिर में भगवान आदिनाथ की प्राचीन प्रतिमा मूलनायक के रूप में स्थापित है। इस प्रतिमा के साथ जुड़े चमत्कार इसे विशेष महत्व देते हैं। 2008 में कुछ मूर्ति चोरों ने इसे क्षति पहुंचाने का प्रयास किया, लेकिन जैसे ही उन्होंने छेनी और हथौड़े का प्रयोग किया, उपकरण टूट गए, और उनके सरदार की दृष्टि चली गई। जब मूर्ति चोर पकडे गए तब उनके सरदार ने बताया कि जब हम बड़े बाबा का सर काटने वाले थे उसी समय मुझे पता नहीं क्या हुआ और मैं बड़े बाबा से लिपट गया और अपने साथियों से कहा कि इनका सिर तो मैं नहीं काटने दूंगा और बड़े बाबा सुरक्षित बचे रहे।
2010 में एक और अद्भुत घटना घटी। पंचकल्याणक महोत्सव के लिए मूलनायक प्रतिमा को पास के पचराईजी मंदिर ले जाया गया। जब प्रतिमा को वापस गोलाकोट लाया गया, तो उसे मंदिर में स्थापित करना असंभव हो गया। सैकड़ों लोग और उपकरण असफल रहे। तब साधना में लीन जंगल बाले बाबा समाधिस्थ पूज्य चिन्मय सागर जी महाराज ने अपनी साधना के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया।
केवल चार लोगों ने प्रतिमा को आसानी से सिंहासन पर विराजमान कर दिया, और इस दिव्य घटना को हजारों श्रद्धालुओं ने अपनी आंखों से देखा।
क्यों कहा जाता है गोलाकोट?
दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र गोलाकोट का नाम इसकी संरचना के कारण पड़ा है। पहाडिय़ा गोल के अनुरूप बने होने के कारण इसे गोलाकोट मंदिर कहा जाता है।
अन्य प्रमुख आकर्षण
मंदिर परिसर में पांच सितारा सुविधाओं वाला अतिथि विश्राम गृह, तितली आकार का सुंदर बगीचा, आधुनिक भोजनालय, जलाशय, स्विमिंग पूल, मुनियों की कुटिया, और निर्माणाधीन त्रिकाल चौबीसी लाल मंदिर जैसे अद्भुत आकर्षण हैं। यहां की शांति, भव्यता और आध्यात्मिक वातावरण हर भक्त के हृदय को छू लेता है।
प्राचीन जलस्रोत और बस्तियां
ऐसा कहा जाता है कि किसी समय यहां 900 कुएं और 89 बावड़ियां थीं जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं। इन जलस्रोतों के चारों ओर 700 से अधिक जैन परिवार दादामुरी गौत्र के निवास करते थे, जो एक ही गोत्र से संबंधित थे। आज भी यहां की भूमि और संरचनाएं उस समृद्ध संस्कृति और परंपरा की गवाही देती हैं।
कैंसर जैसे रोगों का उपचार
ऐसा माना दावा किया जाता है, की मंदिर में प्रतिदिन पूजन और अभिषेक करने से कई असाध्य रोग ठीक हुए हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि यह स्थल केवल आध्यात्मिक उत्थान का ही नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का भी केंद्र है।
तीर्थ के प्रति वैश्विक आकर्षण
यहां हर वर्ष न केवल भारत के विभिन्न राज्यों से बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यह मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बन चुका है।
निकटतम क्षेत्र
गोलाकोट, झांसी से लगभग 90 किमी, मुंगावली से 75 किमी, और बामौर कलां से मात्र 16 किमी की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र आसानी से पहुंचने योग्य है और एक शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है।
निकटवर्ती तीर्थ क्षेत्र
पचराई अ क्षेत्र, यहां से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है, जो अपने दर्शनीय प्राचीन मंदिरों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में अनेकों पूजनीय प्रतिमाएं हैं, साथ ही सैकड़ों खंडित मूर्तियों के अवशेष भी हैं, जो इस स्थान के प्राचीन वैभव को दर्शाते हैं।
यह क्षेत्र धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
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Author: Tejas Reporter
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