मित्रों मैं मेरे विषय पर आने से पूर्व आज से करीब सोलह साल पूर्व विद्यार्थी जीवन में रचित मेरे सुविचार का उल्लेख करना चाहूंगी —
मनुष्य जीवन की महिमा व महत्व :
“यह अपने पूर्व जन्मों से प्रसन्न परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा स्वरूप क्षणभर के लिए मिला अनोखा व अनमोल उपहार है, जिसमें मानवीय मूल्यों रूपी चार चांद लगाकर उसे चिरकाल के लिए अर्थपूर्ण व सुगंधित बनाना प्रत्येक मनुष्य हेतु प्रभु प्रदत कर्तव्य है, चुनौती है और संघर्ष भी है l”
अर्थात मनुष्य प्रकृति की अद्भुत, अनोखी व अनमोल रचना है। मनुष्य को ही प्रकृति ने सोचने – समझने, ज्ञानार्जन की प्रज्ञा, भावनात्मक संवेदनशीलता व विवेक दिया है। साथ ही प्रकृति ने मनुष्य को कुछ अपेक्षित गुण, स्वाभाविक वृतियां व जीवन मूल्य भी प्रदान किए हैं।
मनुष्य को चौरासी लाख जीवों से विशिष्ट बनाने वाले कुछ आधारभूत मानवीय मूल्य है–
प्रेम, परोपकार, दया, दान, सच्चाई, अच्छाई, नेकी, ईमानदारी, सहानुभूति व सहिष्णुता। और इन्हीं मानवीय मूल्यों की आदर्श नियमावली को धर्म कहा गया है, जिसकी आत्मा ही प्रेम व दिल दया है। लेकिन जैसे – जैसे मनुष्य भौतिकता और यांत्रिकी की ओर अग्रसर हो रहा है, वैसे – वैसे वह अपनी इन स्वाभाविक मूल्यों रूपी धरोहर को भुलाकर अब तामसी अवगुणों यथा असंतोष, स्वार्थ, ईर्ष्या, काम, क्रोध, संकीर्णता, घृणा, पाखंड, नशा और क्रूरता की ओर अग्रसर हो रहा है। परिणाम स्वरूप उसके व्यवहार में कई विकृतियां भी आ रही है।
अब मनुष्य चोरी, डकैती, लूटपाट, हत्या, बलात्कार, हिंसा, भ्रष्टाचार आदि की ओर प्रवृत्त हो रहा है। परिणामस्वरूप आज हर रिश्ते में दरारें पड़ने लगी है और रिश्ते संवेदनाशून्य होने लगे हैं। आज पति – पत्नी में नहीं बन रही, भाई – भाई से नहीं बोल रहा, लड़के – लड़कियां घर छोड़कर भाग रहे, बूढ़े माता – पिता को वृद्धाश्रम दिखाए जा रहे और पड़ोसी आपस में ही एक दूसरे का सिर फोड़ रहे। कई बार ऐसे -ऐसे प्रसंग सामने आ रहे कि एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका के टुकड़े – टुकड़े कर दिए तो मुंबई में एक लड़की द्वारा अपनी मां के टुकड़े करके उसे पानी की टंकी में डालकर उस पर परफ्यूम छिड़ककर छिपाने का मामला सामने आया था। सालभर पूर्व एक एसडीएम पत्नी द्वारा अपने पति को धोखा देने का मामला काफी गरमाया रहा तो इसी माह एक बंगलुरू में एक एआई इंजीनियर ने पत्नी की प्रताड़ना व न्यायपालिका की कार्यप्रणाली से निराश होकर अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर दी। मेरे संज्ञान में ऐसी कई औरतें भी हैं, जो अपने चार- चार बच्चों को छोड़कर किसी अन्य प्रेमी के साथ भाग गई और अब तो ऐसी घटनाएं अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को भी पार करने लगी है।
पाकिस्तानी सीमा हैदर और भारत की अंजु इसके सटीक उदाहरण भी सबको याद ही होंगे। ये तो कुछ चंद घटनाएं थी जो समाचारों की सुर्खियां बनी लेकिन लेकिन कई घटनाओं की तो शिकायत ही दर्ज नहीं हो पाती !
अब तो ये मतभेद या झगड़े सिर्फ व्यक्तिगत तक सीमित न रहकर सामुदायिक और सांप्रदायिक स्तर पर भी होने लगे हैं और उनके गंभीर व भयानक परिणाम भी सभी को भुगतने पड़ रहे हैं।
धर्मों और जातियों के आपसी झगड़ों ने तो पूरी मानवता को डर के साए में खड़ा कर दिया है। कई बार इन सबके पीछे सरकारों की पक्षपातपूर्ण नीतियां, नेताओं की भड़काऊं बयानबाजी और कुछ समाज और धर्म के कट्टरवादी असामाजिक तत्वों और ठेकेदारी करने वाले संगठनों और गुंडों का भी हाथ होता है। इसमें में कभी – कभी कुछ पूर्वाग्रह , आशंकाएं और कुछ फर्जी अफवाहें इनकी आग में घी डालने का कार्य करती है। इससे कुछ लोग दो समुदायों को आपस में लड़ाकर या किसी में असुरक्षा की भावना भरकर अपना उल्लू सीधा कर देते हैं, लेकिन इसमें कई बार कई आम और निर्दोष लोगों को अपने जानमाल से भी हाथ धोना पड़ता है और उनके जीवन की बलि चढ़ जाती है। यह दुनिया अभी तक दो विश्व युद्ध की विध्वंस विभीषिका तो देख चुकी है। भारत स्वयं बंटवारे के दौरान एक भयंकर त्रासदी का भुक्तभोगी बन चुका है। आए दिन तालिबान, सीरिया, ईरान – इराक, इजराइल – फिलिस्तीन और रूस – यूक्रेन की हिंसक खबरों के बीच तृतीय विश्व युद्ध के गृहण की आशंका व डर सताता रहता है। आजाद भारत भी बंटवारे के समय, गोधरा दंगों, भारत – पाक युद्धों के समय ऐसी दिल दहलाने वाली और रूंह कंपाने वाली विध्वंस विभीषिकाएं देख चुका है। मणिपुर भी विगत दो सालों से हिंसा की आग में जल रहा है और कई विभत्स दृश्य सामने आए है। अगर ऐसा ही होता रहा तो एक दिन पूरी पृथ्वी ही मनुष्य विहीन हो जाएगी। इसलिए आज कई बुद्धिजीवियों को मानवीय मूल्यों के अवमूल्यन और मनुष्य की व्यवहारिक विकृतियों पर विचार करने और उनका ठोस समाधान को लेकर काफी चिंतित होने को विवश होना पड़ रहा है। *मानवीय मूल्यों के अवमूल्यन के कुछ अन्य प्रमुख विकार व गंभीर परिणाम है – चोरी, डकैती, लूट, शोषण, बलात्कार, हत्या, भ्रष्टाचार, जमाखोरी, भेदभाव, नफरत, जातिवाद, सांप्रदायिकता, आतंकवाद आदि। इन सभी विकृतियों पर भी अलग -अलग काफी विस्तृत चर्चा करते हुए कई किताबे लिखी जा सकती है।
मानवीय संबंधों में मतभेद, तनाव और झगड़े के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार है –
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आज के समय में मनुष्य अपने दुखों से कम और दूसरों के सुखों से ज्यादा दुखी हैं।
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हम देखते नहीं हैं,
सुनते आधा हैं,
सोचते शून्य हैं,
प्रतिक्रिया दुनी करते हैं,
और मानते तो बिल्कुल ही नहीं।
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ज्यादातर लोगों की सोच के अनुसार दुनिया में अक्ल सिर्फ दो है, जिसमें डेढ़ वह खुद है और आधे में पूरी दुनिया है।
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व्यवहारिकता का अभाव : व्यक्ति अच्छी बातें पढ़ता है, लिखता है, बताता है लेकिन स्वयं उस पर अमल नहीं करता। वह समझता है मेरा ज्ञान मेरे लिए नहीं, सिर्फ़ दूसरों के लिए है। *पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
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चाय से केतली का ज्यादा गर्म होना।
अर्थात नेताओं का प्रचार समर्थकों द्वारा किया जाना। जबकि वास्तविकता यह है कि नेताओं की खुद की कोई सैद्धांतिक विचारधारा नहीं होती, वे ज्यादातर मौका परस्त होते हैं। उन्हें अपनी पार्टी से टिकट न मिलने पर वे अपना दल बदल देते हैं, साथ ही सिर्फ दल बदल मात्र से जनता उन्हें दूध से धुला और गंगा में नहाया हुआ मान लेती हैं और कार्यकर्ता ऐसे नेताओं की स्तुति करने लगते हैं।
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एक दूसरे की देखा- देखी व तुलना में समय व धन बर्बाद करना।
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गलत खान – पान, गलत संगति : गलत खान – पान और गलत संगति हमारी जीवनशैली को नकारात्मकता की ओर जाते हैं क्योंकि
जैसा अन्न वैसा मन
जैसा मन वैसा कर्म।
जैसा पानी वैसी वाणी
जैसी वाणी वैसे विचार
जैसी संगति वैसी मति
जैसी मति वैसी ही गति
जैसा संग वैसा रंग
जैसा रंग वैसा मंच
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टेलीविजन का दुष्प्रभाव : टेलीविजन पर दिखाए जा रहे अश्लील और व्यावसायिक विज्ञापन, हिंसक धारावाहिक और सांप्रदायिक एजेंडे से लबरेज़ उत्तेजक बहस व बयानबाजी भी नैतिक मूल्यों के ह्रास का एक कारण है।
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मोबाइल का अविवेकपूर्ण उपयोग : आज व्यक्ति मोबाइल का आदी व गुलाम बन चुका है। एक घर/ परिवार में चार लोग, सात मोबाइल। चारों दिनभर मोबाइल में व्यस्त, आपस में संवाद के लिए समय नहीं।
धोखाधड़ी का माध्यम : संस्कारहीन वीडियो देखना, किसी को झूठे प्रेमजाल में फंसाना। झूठी व भ्रामक अफवाहें फैलाना, हिंसा भड़काना इत्यादि।
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शहर पलायन व एकल परिवार प्रणाली, इससे एक ही परिवार के सदस्य भी एक – दूसरे से दूर रहते हैं इसलिए भावनात्मक जुड़ाव भी कम होता जाता है और शहरों में तो कोई किसी को पहचानता भी नहीं, इसलिए बड़ों की मर्यादा व बच्चों के संस्कार पर समुचित ध्यान नहीं दिया जा पाता।
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शिक्षा का व्यवसायीकरण व नैतिक शिक्षा का अभाव।
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सरकारी तंत्र की विफलता : जब सरकारें किसी व्यक्ति या समूह को न्यायसंगत वितरण के साथ समय पर पर्याप्त संसाधन, सुविधा, न्याय इत्यादि प्रदान नहीं कर पाती, तब कई विकृतियां पनपने लगती हैं क्योंकि कहा गया है –
शांति नहीं तब तक जब तक
सुख भाग न सबका सम हो,
न किसी को बहुत अधिक हो,
न ही किसी को बहुत कम हो।
आज के युग में युग में मानवीय संबंधों को बचाने व प्रगाढ़ करने के लिए कुछ वैकल्पिक सुझाव इस प्रकार हैं –
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विवाद होने या बढ़ने पर अपनी गलती न हो तो भी माफी मांगकर अनिर्णायक बहसबाजी को समाप्त करने की चेष्टा करे। यह आपकी कमजोरी नहीं बल्कि आपकी सूझबूझ होती है
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लोगों को माफ करना सीखो क्योंकि इंसान से गलती हो सकती है। साथ ही गलती करने वाला हमेशा छोटा और माफ़ करने वाला सदैव बड़ा होता है। तभी तो कहा गया है –
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो।
अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण है।
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अपना व्यवहार उस कुम्हार की भांति हो जो घड़े को सुंदर आकर देने हेतु आवश्यकतानुसार चोट व सहारा प्रदान करता रहता है।
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सदा सहज जीवन जियो, हर परिस्थिति में खुश रहो।
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संतोषमय तथा आनंदमय जीवन के (A to Z) सूत्र :-
(A)रात्रि में ज्यादा जगना नहीं
दिन में ज्यादा सोना नहीं।
(B) रात्रि में समय पर सोओ।
सुबह जल्दी उठ जाओ।
(C)उठते-सोते धरती मां का वंदन करो,
माता – पिता का आशीर्वाद लो।
(D)सुबह – शाम भ्रमण को जाओ,
नित्य नियमित स्नान – व्यायाम करो।
(E)सुबह – शाम संगीत सुनो,
पहले संगीत – सुविचार
फिर सुनो समाचार।
(F)भूखे पेट कहीं मत निकलो,
समय पर खाना खाओ और
पर्याप्त पानी भी पीओ।
*सात्विक भोजन संयमित जीवन*
(G)परिवार में प्रेम से रहो,
सदा सभी के साथ रहो।
(H)दिल की बात दिल में मत रखो,
सदा दिल खोलकर और
सोच – विचारकर बोलो।
(I)सच्चाई का पता लगाओ,
शंका का समाधान पाओ।
(J)सत्य से कभी डिगना नहीं,
झूठ का सहारा लेना नहीं।
(K)सदैव कमाई से कम खर्च करो,
एवं उधार की चेष्टा मत करो।
(L)खर्चा हमेशा बाद में बढ़ाओ,
पहले कमाई पर ध्यान दो।
(M)आय बढ़ाने स्थान मत बदलो,
अपनी कार्य कुशलता बढ़ाओ।
(N)कमाई का कुछ अंश बचाओ,
सदा उसे परोपकार में लगाओ।
(O)आगे बढ़ने हेतु अमीर को देखो,
सुकून हेतु गरीब को देखो।
(P) जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है,
जो मिला नहीं, वह मेरा नहीं
(Q)सपने सिर्फ नींद में न देखो,
दिन में सपनों पर काम करो।
(R)संबंधों की समझ व सहनशीलता रखो,
दुर्बल प्रति सदैव दया का भाव रखो।
(S)देखा-देखी का दिखावा छोड़ो,
चादर उतना पांव पसारो ।
*सादा जीवन उच्च विचार*
(T)असंभव कभी कुछ मत मानो,
प्राप्ति हेतु प्रयास कभी मत छोड़ो ।
(U)कभी किसी को कम मत आंको,
जानवर से भी सीखने का प्रयास करो।
(V)विश्वास अपने आप पर करो,
अंधविश्वास कभी किसी पर मत करो।
(W)सुनो सबकी करो विवेक की,
(X)कुछ न कुछ तो काम करो।
खाली कभी भी मत बैठो।
(Y)पहले सोचो, फिर बोलो,
सोच विचार कर कदम रखो।
(Z)जीवन व जवानी का भी आनंद लो,
लेकिन बुढ़ापे व मौत का सदैव ख्याल रखो।
भेदभाव कभी किसी से मत करो,
सबसे सम्यक दृष्टिकोण रखो।