“सवाल पूछने वाली एक आवाज़: रूढ़िवाद, राजनीति और बेरुख़ी के बीच संघर्ष करती एक ट्रांसजेंडर लेखिका की कहानी”

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कलम का संघर्ष | हमारे समाज में अक्सर आवाज़ उठाने वाले लोगों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। खासकर, जब यह आवाज़ किसी हाशिए पर खड़े समुदाय से आती हो। यह कहानी भावना मंगलमूर्ति की है—एक ट्रांसजेंडर लेखिका, जो समाज, राजनीति, और रूढ़िवाद के खिलाफ़ सवाल उठाने का साहस रखती हैं। राजस्थान से निकलकर महाराष्ट्र के दहानू में रहने वाली भावना जी ने अपने लेखन और तर्कशीलता से एक नई पहचान बनाई। लेकिन उनकी यह यात्रा सिर्फ संघर्षों की दास्तां है।

भावना मंगलमूर्ति नवोदय विद्यालय से शिक्षित हैं और राजनीतिक मुद्दों पर विश्लेषण करना उनकी विशेष रुचि है। 2018 से उन्होंने हर चुनाव में अपने सटीक पूर्वानुमान और तर्कशील विचारों से एक अलग छवि बनाई। उनके चुनावी विश्लेषण, खासकर 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव, मध्य प्रदेश, हरियाणा, और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित रूप से सही साबित हुए।
प्रकाशित पुस्तकों से आत्मनिर्भरता की उम्मीद :
पिछले वर्ष उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुईं—“वर्तमान विडंबनाएं एवं यथार्थ,” “मेरे सपनों का भारत,” और “अध्यात्म से तर्क की ओर।” भावना जी को उम्मीद थी कि उनकी यह रचनाएं उन्हें आत्मनिर्भर बनाएंगी। लेकिन न तो मीडिया ने उनके साहसिक लेखन को मंच दिया, न ही उनकी पुस्तकों ने बाज़ार में जगह पाई।
सिस्टम के खिलाफ़ सवाल उठाने की सजा :
भावना जी का लेखन सत्ता, व्यवस्था, अंधविश्वास, और रूढ़िवाद के खिलाफ़ है। लेकिन उनकी इस स्पष्टवादिता ने उनके रास्ते में कांटे बिछा दिए। जब उन्होंने मोदी सरकार और बीजेपी की आलोचना की, तो सहयोग के दरवाजे बंद हो गए। ओबीसी वर्ग की लेखिका होने के बावजूद, उनके समाज ने उन्हें इसलिए नकार दिया क्योंकि वह धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द की बातें करती हैं।
किन्नर समाज और रूढ़िवाद का दबाव :
जहां भावना जी वंचितों के अधिकारों की बात कर रही थीं, वहीं किन्नर समाज, जो अक्सर रूढ़िवाद का शिकार होता है, उन्हें अपने भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ा। उनकी प्रगतिशील सोच ने किन्नर समाज के भीतर छिपी रूढ़ियों को भी सवालों के घेरे में ला खड़ा किया।
मीडिया की बेरुख़ी :
भावना जी जब सत्ता से सवाल करती हैं, तो गोदी मीडिया से किसी सहारे की उम्मीद नहीं करतीं। लेकिन यह अफसोसजनक है कि स्वतंत्र पत्रकारों और मीडिया ने भी उनके साहस और लेखन को समझने की कोशिश नहीं की। यह बेरुख़ी इस बात का संकेत है कि आज का मीडिया भी अपनी प्राथमिकताओं और पूर्वाग्रहों का शिकार हो चुका है।
हाथ फैलाने की मजबूरी :
भावना मंगलमूर्ति आज भी “युवा प्रदेश” नामक एक साप्ताहिक ई-पोर्टल के लिए संपादकीय लिखती हैं। लेकिन समाज से समर्थन न मिलने और आर्थिक तंगी के कारण उन्हें लोगों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
समाज के लिए एक सवाल :
भावना जी की कहानी सिर्फ उनकी नहीं है; यह हमारे समाज के दोहरे मापदंडों की कहानी है। एक समाज, जो साहसिक सवाल उठाने वालों को हाशिए पर डाल देता है। यह कहानी हमें झकझोरने के लिए काफी है। आखिर कब तक हम उन आवाज़ों को अनसुना करेंगे जो सच्चाई, तर्क, और प्रगति के लिए उठती हैं?
वे कहती हैं, कि मेरी आर्थिक बदहाली के लिए मेरा साहसिक लेखन व तार्किक मुखरता के साथ – साथ मीडिया की बेरूख़ी भी जिम्मेदार !
भावना मंगलमूर्ति के शब्दों में छिपा दर्द एक पुकार है। क्या हम इसे सुनने के लिए तैयार हैं?

✍🏻 कलम का संघर्ष:
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Tejas Reporter
Author: Tejas Reporter

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